Friday, December 18, 2009

तारीख़..


...

"कह देना उन ग़ज़लों को..
यूँ मेरा मज़ाक ना बनाएं..

जिस शब तन्हाई मेरी होंगी..
रूह में सुलगती आहें होंगी..

तेरी इबादत से पाया है जहां..
तुझसे ही इनायत होंगी..

आऊँगा फिर से लौट-कर..जब..
कलम की दराज़ से तारीख़ होंगी..!"

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