Sunday, December 20, 2009

आ जाओ..


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"महबूब मेरे..
बस करो..

दुनिया की मजबूरी..
साँसों की नाइंसाफी..
बेगैरत रिवायतें..

आ जाओ..
आशियाना फिर सजाएं..

मिलकर..
ज़माने को भूलाएँ..
खुद खो जाएँ..!"

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