Saturday, December 26, 2009

माँ..


...

"आती है याद जब भी...
नम हो जातीं हैं आँखें..

मिलता हूँ जब भी..
खिल जातीं हैं बाँछें..

त्याग की सूरत हो तुम..
मन-मंदिर की मूरत हो तुम..

बौना हो जाता हूँ..
वात्सल्य के पर्वत के आगे..

माँ..
तुझको नमन..

तुझको अर्पण..
सारी उपलब्धियाँ..!"

...

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अनिल कान्त said...

ek achchhi rachna padhne ko mili

निर्मला कपिला said...

बहुत सुन्दर रचना है माँ से बढ कर कोई देव नहीं कोई धर्म नहीं शुभकामनायें

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर रचना!! बधाई\

Udan Tashtari said...

भावपूर्ण रचना...

priyankaabhilaashi said...

आप सब का बहुत-बहुत धन्यवाद..!!

Unknown said...

sach me ma ke upar jo bhi lika hai vo padkar ma ki yaad aayi. really very nice written