Monday, December 28, 2009

क्षमा-प्रार्थी..


...

"आँचल की छाँव को..
कारागार मानता रहा..

हर कर्म को..
तेरा फ़र्ज़ मानता रहा..

माँ..

क्षमा करना..
सब अपराध..

करता रहा जीवन भर..
तेरा उपहास..

क्षमा-प्रार्थी हूँ..!"

...

3 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

aarya said...

सादर वन्दे
माँ क्या कहें भगवान की इस नेमत को.......
ये हमारे लाख दुःख सहती है
लेकिन फिर भी खुश रहती है,
और भले दुश्मन हो जाये
माँ लेकिन माँ रहती है .
रत्नेश त्रिपाठी

Udan Tashtari said...

माँ से क्षमा नहीं मांगी जाती मित्र..उसे सब पता है...है न माँ!!
वो पूजा की वस्तु है..पूजनीय...उसकी बस शरण में जाया जाता है!!


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यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।

हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.

मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.

नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।

आपका साधुवाद!!

नववर्ष की अनेक शुभकामनाएँ!

समीर लाल
उड़न तश्तरी

priyankaabhilaashi said...

आप सब का बहुत-बहुत धन्यवाद..