Wednesday, March 24, 2010

'जुल्म-ओ-सितम..'




...

"तड़पती हूँ..
तरसती हूँ..
इन तौह्मतों से..
मचलती हूँ..

इल्ज़ाम है..
इतना-सा..
इक लड़की का..
जिस्म पाया है..

रूह में इबादत..
हर नफ्ज़ शुमार..

क्या मिट सकेगा..
कभी..
ये जुल्म-ओ-सितम..!"

...

15 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

M VERMA said...

सत्य उद्घाटित किया है आपने
सुन्दर रचना

अजय कुमार झा said...

प्रश्न बडा है और ..सामने कटघरे मेअम सारा समाज है ....बहुत अच्छी अभिवयक्ति
अजय कुमार झा

Dev said...

अंतरात्मा को छु गयी आपकी ये रचना ...बहुत बढियाँ

dipayan said...

आज के ज़माने के आत्मा को झकोड़ता हुआ प्रश्न । सुन्दर रचना ॥

विजयप्रकाश said...

अति सुंदर...सुघड़ता से पिरोये शब्दों में स्त्री पीड़ा की अत्यंत मार्मिक अभिव्यक्ति है.

आकाँक्षा गर्ग ( Akanksha Garg ) said...

मार्मिक अभिव्यक्ति अच्छा प्रश्न उठाया है आपने
लेकिन शायद इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं
" आखिर कब मिटेगा ये जुल्म-ओ-सितम ! "

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद वर्मा जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद संजय भास्कर जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद अजय झा जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धनयवाद दीपायन जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धनयवाद विजयप्रकाश जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद मै'म..!!

Arshad Ali said...

sundar prastuti

satik chitran..kamal ka shabd sayam.
thanks

Unknown said...

really a very good poem.........touching.........

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद गौतम जी..!!