Sunday, April 4, 2010

'खामाखां..'


...

"भिगो गयी..
रुसवाई की आँधी..
साँसें उलझी हैं..
रूह से..
खामाखां..!!"

...

14 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

अक्सर होता है कि
आंधी में
पत्ते और बेलें
उलझ जाती हैं.
कुछ यहाँ भी
हुआ है ऐसा ही
खामखां


बाहर खूबसूरत लिखा है आपने

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद संगीता जी..!!

M VERMA said...

सुन्दर पंक्तियाँ
बेहतरीन

Dev said...

ये आपकी खासियत है ......कम शब्दों में भी बहुत कुछ कह देती है ......बहुत सुन्दर रचना

Shekhar Kumawat said...

PHOTO SE SAB KUCH SAMJH AA GAYA AAP KE DIL KA HAL

SHEKHAR KUMAWAT

http://kavyawani.blogspot.com/

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद देवेश प्रताप जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धनयवाद वर्मा जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद शेखर कुमावत जी..!!!

विजयप्रकाश said...

वाह...बिल्कुल नपी-तुली बात, सुंदर कविता

पूनम श्रीवास्तव said...

in thode shabdo me bahut hi gahari baat kah di hai aapne.bahut khoob,.

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद विजयप्रकाश जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद झरोखा जी..!!

स्वप्निल तिवारी said...

nice one