Thursday, May 6, 2010

'आज फिर..'


...

"जुड़े हैं कांटें..
जीवन में ऐसे..
ना फांस निकलती है..
ना लहू के कतरे..


तुम तो..
बस छुअन से..
समा बाँध देते थे..

मेरी कश्ती गहराई से..
उबार दो..
आज फिर..!"

...

5 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

संजय भास्‍कर said...

... बेहद प्रभावशाली

M VERMA said...

फांस जब निकलेगी तो लहू के कतरे भी छलक ही उठेंगे.
सुन्दर रचना

Unknown said...

उतम रचना

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद HTF जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद दिलीप जी..!!