Sunday, May 16, 2010

'मतला..'




...

"टूटा है..
आशियाँ फिर..
नम हुईं..
आँखें फिर..
जला है..
गुलिस्तान फिर..
बहा है..
दरिया फिर..

कब तक..
मतला लिखूँ..
गुफ्तगू का..!!"

...

7 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

शारदा अरोरा said...

सुन्दर शुरुवाद हुई , मगर जुबाँ खामोश हुई ।

Unknown said...

सुन्दर,सशक्त अभिव्यक्ति के लिए बधाई

M VERMA said...

गुफ्तगू का मतला यूँ ही चलता रहेगा
बेशक देश ये यूँ ही जलता रहेगा

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद शारदा जी..!

दिलीप said...

bahut shashakt lekhan ...

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद उम्मेद जी..!!

संजय भास्‍कर said...

jabardast rachna...