Monday, May 24, 2010

''शब..'


...

"लिपट कर..
रोई बहुत..
गर्द से ढकी..
जुस्तजू से महकी..
दास्तान-ए-मोहब्बत..
गलीचा-ए-गुल..
नम हुआ..
गम-ए-शहनाई..
बाँह फैलाती..

तेरी और मेरी..
तस्सवुर की..
बहती हुई..
अरमानों की..
रूह में पनपती..

जिस्म में सुलगती..
तूफानी मंज़र..
आवारा..
मदमस्त..
मयकशी..
'शब'..!!"

...

4 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

संजय भास्‍कर said...

सुंदर, सटीक और सधी हुई।

Udan Tashtari said...

बहुत सुन्दर!! आपकी रचनायें अच्छी होती हैं हमेशा ही!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद उड़न तश्तरी जी..!!

HITESH said...

Shubhan Allah ..!