Tuesday, May 25, 2010

'माज़ी..'


...

"समझ सके जो..
रूह का शामियाना..
ऐसी..
मशाल चाहता हूँ..

तेरी इबादत में..
बिक जाऊँ..
ऐसा..
जुनूँ चाहता हूँ..


लम्हों के बादल..
फलक की मेहँदी..
ऐसा..
तौहफा चाहता हूँ..


आफ़ताब-सा लोहा..
महताब-सी सुराही..
ऐसा..
दरिया चाहता हूँ..

ए-माज़ी..
तुझमें..
सिमटना चाहता हूँ..!!"

...

2 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

दिलीप said...

waah lajawaab ..kya chaahat hai...waah

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद दिलीप जी..!!