Thursday, August 5, 2010

'रूह के झमेले..'


...

"तन्हाई के मेले..
जकड़ें अरमानों के ठेले..
उम्मीदों के साहिल..
ख्यालों के रेले..
हौसलों के तबेले..
हर नफ्ज़..
हकीकत से खेले..

बस करो..
नुमाइश-ए-बेरुखी..
जलते हैं..
रूह के झमेले..!!"

...

2 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

संजय भास्‍कर said...

वाह! ऐसी कवितों से जीने की उर्जा मिलती है.
..आभार.
बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद संजय भास्कर जी..!!