Wednesday, August 25, 2010

'माज़ी भुलाता जाता हूँ..'


...

"जज्बा-ए-सौगात सुनाता जाता हूँ..
फ़क़त..समा-ए-गम दबाता जाता हूँ..१..

हुई ना तलाश मंजिल की..ए-वाईज..
हादसों से प्यास बुझाता जाता हूँ..२..

अलफ़ाज़ गिरेंगे पेशानी की जुबानी..
खलिश रूह की गहराता जाता हूँ..३..

गीली है बस्ती-ए-खुदा..जाने क्यूँ..
नजदीकियाँ फिर माज़ी भुलाता जाता हूँ..४..

निकला था इश्तिहार-ए-कफ़न जनाज़े का..
दरीचा-ए-मासूमियत नहलाता जाता हूँ..५..

बेवफा मजबूरी..थोड़ी स्याही-ए-गम..
वक़्त-ए-रुक्सत दफनाता जाता हूँ..६..

किया सौदा-ए-कूचा..गुनेहगार बन..
दरिया-ए-खून महबूब निकालता जाता हूँ..७..!"

...

0 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..: