Friday, October 1, 2010

'मेरे महबूब..'


...


"राज़ खुलते रहे..शब भर..
सिलवटें बिखरी रहीं..शब भर..
दराज़ महकते रहे..शब भर..
रूह मचलती रही..शब भर..
नगमे झनकते रहे..शब भर..
नज़रें सिमटीं रहीं..शब भर..
मदहोशी बहती रही..शब भर..
आग दहकती रही..शब भर..

एहसां ता-उम्र..
वस्ल-ए-रात..

मेरे महबूब..!"

...

4 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

संजय भास्‍कर said...

बहुत खूब .जाने क्या क्या कह डाला इन चंद पंक्तियों में

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद संजय भास्कर जी..!!

Anonymous said...

bahut khoob
aap ki urdu gazab hai

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद अपूर्ण जी.!!