Saturday, November 13, 2010

'रूहानी रूह..'


...


"एक जाल बुना था..
इर्द-गिर्द..
कुछ रूहानी रूह..
कूचा बसा गए..
जाम-ए-सुकूत..
छलका गए..
गहरा गए हो..
ज़मीं के आसमां पे..
फ़क़त..
भूला गए..
वजूद..!!"


...

8 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

Sunil Kumar said...

सुंदर भावाव्यक्ति अच्छी लगी

Deepak Saini said...

भूला गये
वजूद

बेहतरीन पक्तिया है

निर्मला कपिला said...

जमीँ के आसमां पर
भुला गये वज़ूद
सुन्दर अभिव्यक्ति। शुभकामनायें।

निर्मला कपिला said...

अपके दूसरे ब्लाग पर कमेन्ट नही पोस्ट हो पा रहा। शायद आपने वर्ड वेरिफिकेशन लगा रखी है।

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद दीपक सैनी जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद निर्मला कपिला जी..!!

संजय भास्‍कर said...

सुन्दर अभिव्यक्ति। शुभकामनायें।

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद संजय भास्कर जी..!!!