Sunday, November 21, 2010

'एहसासों का दरख्त..'


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"साँसों में मह्फूस रहा था..जो कभी..
जुस्तजू से आबाद बहा था..जो कभी..
तंग हो गयीं हैं एहसासों की दरख्त..
सच ही है..माज़ी ने कहा था जो कभी..!"


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2 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

संजय भास्‍कर said...

बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद संजय भास्कर जी..!!!