Saturday, December 18, 2010

'फ़लक-ए-महबूब..'



...


"तबस्सुम मौज़ पर..
तैरती है..
जब कभी..
चेहरा तेरा..
मेरे हमदम..

नूर-ए-हुस्न..
अख्तर-सा..
निखर जाता है..

सच कहा था..
फ़ासिलों ने..

नामुमकिन है..
फ़लक-ए-महबूब..
फ़ना ना होना..!!!"


...

2 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

Shekhar Suman said...

दरअसल ब्लॉग हैक होने के बाद दुबारा सब जगह फोल्लो करना पड़ रहा है...और आज कल बिना टिपण्णी किये ही चला आता हूँ...माफ़ी चाहूँगा ...लेकिन मैं बराबर आपके ब्लॉग पर आ रहा हूँ...बस टिपण्णी नहीं की....

:) :)
बहुत ही प्यारी रचना...

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद शेखर साब..!!

आप आये अच्छा लगा..ऐसे ही आते रहिये..ओर सबको भी निमंत्रण दीजिये..!! सबका हार्दिक स्वागत है..!!