Sunday, February 13, 2011

'बारहां..'




...


"उधड़ी पड़ी है..
रूह की परतें..

बंज़र हैं..
शज़र के मोती..

सूखे हैं..
सिगड़ी के पोर..

बैगैरत हैं..
अरमानों के साये..

बेवफ़ा हैं..
ज़िगर के ताले..

ग़मज़दा हैं..
हथेली के छाले..

बेआबरू हैं..
वजूद के सपने..

बारहां..
बोसा जलाती है..
सर्द रातें..!!"

...

2 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

Anonymous said...

सजीव और सटीक चित्रण!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद मयंक साहब जी..!!