Thursday, March 10, 2011

'जीने की तलब..'



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"ज़ज्बातों की आँधी से उलझता हूँ..
काफिला साथ..हर शब मचलता हूँ...

जीने की तलब..बेरंग हो चली है..!!"

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4 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत बढ़िया!

Udan Tashtari said...

वाह! बेहतरीन..

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद उड़न तश्तरी जी..!!!

Patali-The-Village said...

बहुत बेहतरीन|धन्यवाद|