Monday, March 21, 2011

'सितम की ज़ुल्मत..'




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"दाम लगाने आये वाईज़..
बारहां..
वफ़ा की शब से..
ना मिला अक्स..
ना साँसों का ठिकाना..
अजीब है..
सितम की ज़ुल्मत..
रूह के नक़ाब..
नश्तर कर जाती है..!!!"

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2 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत बढ़िया.

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद यशवंत माथुर जी..!!