Friday, April 29, 2011

'चाहत की कश्ती..'



...


"तहज़ीब के निशां..
अरमां के गेसू..
याद है..
शब-ए-वस्ल..
आँगन में टेसू..
दर्द की लहरें..
ले डूबीं..
चाहत की कश्ती..!!!"

...

2 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

संजय भास्‍कर said...

गजब कि पंक्तियाँ हैं ...

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद संजय भास्कर जी..!!