Saturday, May 7, 2011
'नाम..'
...
"वफ़ा की धुंध..
नाम जानती है..
हमारा..
बाँध देती है..
नज़रों के तार..
लबालब जज़्बात..
और..
मोहब्बत का नज़राना..
जाओ..
किसी रोज़..
छानने कूचे की ख़ाक..
पाओगे लिखा..
फ़क़त..
नाम..
तुम्हारा-हमारा..!!"
...
Labels:
अंतर्मन की पुकार..
2 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
कितने गहरे भाव छुपा रखे है आपने बस कुछ पंक्तियों में...बहुत सुंदर...धन्यवाद।
धन्यवाद संजय भास्कर जी..!!!
Post a Comment