Thursday, June 16, 2011

'रूमानी-इतर..'




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"चलो..
रूह की सीमा बनाते हैं..
कुछ लकीरें तुम खेंचना..
कुछ हम उखेड़ेंगे..
ना मुरझा पाये जो गुल..
रूमानी-इतर समझ..
जिस्म पर ओढ़ लेना..
ना जाने..
मुलाकात फ़क़त ना हो..!!!"


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7 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

विभूति" said...

bhut acchi....

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद सुषमा 'आहुति' जी..!!

M VERMA said...

चन्द शब्द और बहुत खूबसूरत भाव

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद वर्मा जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद मयंक साहब..!!

डॉ .अनुराग said...

wow...तुम ऑरकुट पर तो नहीं थी..कुछ कुछ वैसा सा लिखती हो ...भला सा ...बेहद खूबसूरत .जैसे की ...ये वाला....

priyankaabhilaashi said...

डॉक्टर साब..


हम ऑरकुट पर थे और अब भी हैं..!! शायद आपको याद हो..'प्रियंका जैन' जयपुर से..!!!
बरहाल, शुक्रिया..आप आये और रचनाओं को पढ़ा..!!!

ऐसे ही हौसला-अफजाई करते रहें..!!