Saturday, July 16, 2011

'रेज़ा-रेज़ा रूह..'





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"बिखर रही हूँ..
आज फिर..
क्या संभालने आओगे..
रेज़ा-रेज़ा रूह..
आहिस्ता-अहिस्ता रिसता लहू..
आज फिर..
क्या बाँध पाओगे..!!!"


...

6 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

विभूति" said...

दर्द ही दर्द है आपकी पंक्तियों में....

Rakesh Kumar said...

बस तेरा ही आसरा है मौला.
बनाये जा ,बिगाड़े जा
बिगाड़े जा,बनाए जा
कि हम तेरे चिराग हैं
जलाए जा,बुझाए जा.

सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार,
मेरे ब्लॉग पर आप आयीं इसके लिए भी आभार.

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद सुषमा 'आहुति' जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद राकेश कुमार जी..!!

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) said...

रेजा रेजा रूह... कमाल के शब्द चुन के लाये है.... अच्छी लगी रचना....

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद वन्दना महतो जी..!!