Saturday, November 26, 2011

'रूह के छाले.. '



...


"खफ़ा हूँ..
खुद से..

आ जला दे..
रूह के छाले..

बुझते नहीं..
जिस्मों के ताले..

क्या मुमकिन है..
अरमानों के पाले..!!!!"

...

8 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

Sunil Kumar said...

वाह वाह ..

विभूति" said...

बेहतरीन शब्द सयोजन भावपूर्ण रचना.......

shephali said...

खुद से झगडा कुछ ऐसे ही होता है

Nidhi said...

जब कुछ नहीं कर पाते तो खुद से ही नाराज़ होना ही रह जाता है...बाक़ी

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद सुनील कुमार जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद सुषमा 'आहुति' जी..!!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद शेफाली जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद दी..!!