Thursday, June 21, 2012

'तहखाने..'





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"गुल सज़ाने हैं कई..
अश्क मंज़ाने हैं कई..१..

फ़क़त..जुर्म हैं साँसों का..
एहसास रज़ाने हैं कई..२..

शोखी निस्बत मौसम..
मसरूफ़ियत के फ़साने हैं कई..३..

नज़रें बेज़ुबां..सिरहन बेनक़ाब..
अदा के खज़ाने हैं कई..४..

क़त्ल-ए-आम दरिया हुआ..
कुर्बानी के तहखाने हैं कई..५..

चिकने ग़म-ए-हिजरां..
रफ्ता-रफ्ता गलाने हैं कई..६..!!"

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3 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

M VERMA said...

बेहतरीन .. लाजवाब

Nidhi said...

तीसरा शेर बहुत अच्छा है .

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद एम वर्मा जी..!!