Saturday, July 7, 2012

'सूक्ष्म संकीर्ण..'




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"पश्चाताप गहराता जा रहा..
क्यूँ बंधन स्वीकार किया..
काश..
न झुका होता..
समाज की सूक्ष्म संकीर्ण दीवारों के आगे..!!"

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