Sunday, January 6, 2013

'रेला..'






...


"कोई रख सकता जन्नत आँखों में..
कोई लपेट देता लिहाफ़ लज्ज़त के..
कोई जला देता साँसों की सिगड़ी..
कोई बिछा देता आहों की लकड़ी..

सुलगती रहती रेज़ा-रेज़ा..
गहराती जाती वफ़ा तह-दर-तह..

काश..
माज़ी लकीरों का सौदा ना करता..
हसरतों का बाकी कोई रेला ना होता..!!"

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1 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद निलेश माथुर जी..!!