Wednesday, May 29, 2013

'पहला पड़ाव..'



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"राजधानी की यात्रा..
पहला पड़ाव हमारे प्रेम का..
याद है न..??

कल फिर से जा रही हूँ..

स्मृतियों को मिटाने..
चिपकी हैं जाने कबसे..
मीलों दौड़ती सडकों की रोड़ी पर..

सुगंध छुड़ाने..
फैली है जो..
हर वृक्ष की छाल में..

रंग बिसराने..
रमे हैं जो..
नीले आकाश पर..

भूल आऊँगी..
बहा आऊँगी..
अंतर्मन की नीव..
शेष कहाँ मेरा जीव..!!"

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--- सितम्बर २०११.. याद है न आपको..

Tuesday, May 28, 2013

'ख़ता..'




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"ऐसी ख़ता हर शाम मेरे साथ हुई..
कतरी ख़ुशी फ़क़त मेरे नाम हुई..!!"

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Tuesday, May 21, 2013

'आवारा वज़ूद..'






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"रिश्तों का बोझ यूँ भी उठाते थे हम..तेरे मिलने के बाद जीने लगे थे..!! तुम्हें जाना था चले जाते..क्यूँ नापे फ़क़त जिस्म के रेशे.. रेज़ा-रेज़ा छिल गयी रूह और तुम्हें मुझसे बाबस्ता ना रहा.. क्यूँ इतने करीब लाये कि साँसें भूल गयीं चलने, बिन तेरे..!!!

किसी सज़ा से डरता नहीं..तेरी ख़ामोशी चीर चुकी रग-रग.. स्याह बेज़ुबां आवारा वज़ूद..!!!!"

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---कुछ फैसले आपके हाथ में नहीं होते, बस निभाने पड़ते हैं..जैसे..जीना तुम बिन..

Monday, May 20, 2013

'ज़िंदा जिस्म..'





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"दफ़अतन तुम्हारे ज़ेहन से कैसे उतर गयी..गिर बाँहों से गर्द हो गयी.. क्या गुनाह हुआ..कहाँ छूटी तपिश.. तड़पती रातें..फफकती साँसें..बेआबरू रूह..!!!

एक रत्ती मिट्टी..एक गज़ सूत.. ज़िंदा जिस्म..बेबस हसरत..अदद अश्क..बोझिल आँखें.."

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---तेरे बिन थक गयीं हैं आहें..

'खंज़र..'






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"खंज़र को धार नहीं लगती..
ज़ख्मों को खार नहीं लगती..

दर्द मेरा क्या जानेगा ज़माना..!!"

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Sunday, May 19, 2013

'इक गमला..'




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"तेरी याद का इक गमला रखा था जो मेज़ पर साथ बीते पलों के बीज वाला..फलने-फूलने लगा है..जब भी वहशत का तूफां आता है, नर्म साँसों की टहनी रूह की वादियों में कर देती है बौछार..!!! सिलवटों का असर उतर आया है गुलों की रंगत में..उँगलियों के पोर से सहलाती हूँ जब पत्तियाँ, कसती गिरफ़्त बढ़ा जाती है धड़कन..!!!

पर तुम नहीं होते हो..और यूँ ही मचलता है आफ़ताब की चांदनी से इसका जिस्म.. तरसती रूह हर शै वास्ते, मेरे जोगिया..!!!"


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---सन्डे नाईट थॉट्स..

Friday, May 17, 2013

'दूरियां..'





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"कुछ तीस दिन गुज़र गए..ना जाने कितनी सदियाँ बीत गयीं..तुम नहीं आये..!!! किस ज़ुर्म की सज़ा पा रही हूँ..नहीं जानती.. रेज़ा-रेज़ा राख़ में तब्दील होती रूह की तकदीर..!!!"

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---दुनिया गले लगाती रही, इक तुम ही दूरियां बढ़ाते रहे..

Sunday, May 12, 2013

'जिस्म की आँच..'



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"टपकती..
छनती..
साँसों की तार से..
मोहब्बत की चाशनी..

पकाया बहुत देर..
जिस्म की आँच पर..

रूह की तासीर बदल गयी..
तेरी इक छुअन से..

लज्ज़त ज़ुबां पर..
रेज़ा-रेज़ा लुफ़्त..
सलीका-ए-तपिश..
लब पे पैबंद दरिया..

अहह..
रूहानी सफ़र..
इक..
तेरा कूचा..!!!"

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'माँ..'

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"माँ के लिए भी सिर्फ एक दिन.?? ऐसा लगता है..या तो संसार विचित्र है या मुझ जैसे थोड़े और लोग भी..!!

बड़ा अद्भुत है परम-कृपालु मार्केटिंग वालों का जंजाल और उससे भी अधिक सुंदर है आजकल लोगों का बदलता हुआ मानसिक परिवेश..!!"

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---सो-कॉल्ड मदर्स डे पर..