Tuesday, September 24, 2013

'मेरे रंगरेज़..'





...

"जा रंग ले..
खूं से रूह के लिबास अपने..

यूँ भी मैं शामिल रहूँगा..
हर अल्फ़ाज़ में तेरे..

बहुत गहरे हैं..
चाहत के घेरे..
ना टूटेंगे..
ये चंद फेरे..

जा..मेरे रंगरेज़..
रंग ले..

मेरे जिस्म से..
वफ़ा के माने..
ना मिलेंगे..
कोई हमसे बेगाने..!!"

...

2 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही अच्छी लगी मुझे रचना........शुभकामनायें ।

दिगम्बर नासवा said...

बहुत खूब ... वफ़ा के मायने ढूँढने की जरूरत क्या है जो प्यार है ...