Wednesday, December 18, 2013

'आँखें..'






...

"कितने राज़ खोलती है..
कितने समेटती है..

तुम्हारी हर बात..
जाने क्या बोलती है..

मैं सुन भी न पाऊँ..
फिर भी थामे रखती है..

उदास कहूँ या अलहड़..
कितनी अंदर झकझोरती है..

तुम क्या जानोगे..
सच ना मानोगे..

संयोग से मिलना..देखो..
आँखें कैसे पुचकारती हैं..!!"

...

4 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

संजय भास्‍कर said...

बहुत खूब .जाने क्या क्या कह डाला इन चंद पंक्तियों में

संजय भास्‍कर said...

आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)

संजय भास्‍कर said...

आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद संजय भास्कर जी..!!!