Thursday, December 26, 2013

'दर्द और आगोश..'






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"कोहरा पंख फैलाए बैठा रहता है..हर रोज़ कहता है, "आओ, तुम्हें तुम्हारी 'जां' से मिलवा लाऊँ दुनिया की नज़रों से छिपा कर.. क्यूँ तड़पते हो दिन-रात..?? जाओ, भर लो ना आगोश में जो तुम बिन जी नहीं सकते..!!"

हमने कहा, "सुनिए, कोहरा महाशय..दर्द और आगोश अब दोस्त नहीं रहे.. हम उनके नहीं हो सके.. शायद, वो भी हमें न भुला सके..!! पर मियाद पूरी हो गयी..!! वक़्त के साथ सब बह गया..जो रह गया वो मैं हूँ..!!! टूटा..बिखरा..बर्बाद..बेज़ुबां..बेगैरत..तनहा..फ़क़त मैं..!!"

मान जाओ, कोहरा बाबू.. कुछ नहीं रखा इन सब में..!! जाओ, अपना कर्तव्य निभाओ..!!"

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--तुम बिन दिल जिंदा नहीं अब..

7 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

Yashwant R. B. Mathur said...

कल 29/12/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद!

Misra Raahul said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (29-12-2013) को "शक़ ना करो....रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1476" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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नव वर्ष की अग्रिम हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

सादर...!!

- ई॰ राहुल मिश्रा

दिगम्बर नासवा said...

कोहरे की अनदेखी बातें ...

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद राजीव कुमार झा जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद यशवंत जी..!!

सादर आभार..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद राहुल मिश्रा जी..!!

सादर आभार..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद दिगंबर नासवा जी..!!