Saturday, November 30, 2013

'असीम उत्साह..'






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"रंग अब तक सूखे नहीं..
दो बरस से अधिक समय बीत गया..
अंतस में जमी कोमल चादर की पत्तियाँ..सींचती हैं सुबह से साँझ तक..
बल के साथ असीम उत्साह भी..

जीवन के पथ जब विस्तार माँगने लगे हैं..बिछुड़ना आवश्यक हो चला है..
समय के वेग के आगे नि:शब्द और स्तब्ध हैं सारे मौन और प्रायोगिक पारितोष..!!

समय और स्मृति..
अथाह हो तो भी क्या..
अपूर्ण होती है सुगंध..
पुष्प की पंखुड़ियों की छाया के बिना..!!"

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--शांत..निर्मल क्षण जीवन का बोध कराते हैं..

Thursday, November 28, 2013

'ओढ़ लें..'













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"मेरी जां..

तुमसे ही सुबह होती है..
तुमसे ही शाम..

जिस दिन सोचूँ..न करूँ परेशां..
उस दिन ही होते हो..
तुम सबसे ज्यादा परेशां..

ऐसा क्या है हम दोनों के बीच..
लेता है रंग जो स्याह अंधेरों के बीच..

पहर सारे रात-भर रोशनी मंगातें हैं..
हमसे गरमी के सारे अलाव जलाते हैं..

सूत की चादर और सिलवटों के लिहाफ़..
सजाते हैं हमसे..उल्फ़त के खिताब..

पोर से रिसते बेशुमार टापू..
सीखा हमसे है होना बेकाबू..

आज़ादी का जश्न तेरी बाँहों में..
गिरफ़्त का सुकून तेरी आहों में..

राज़ तेरे-मेरे..दांव पे ज़िन्दगी..
आ ओढ़ लें..रूह की दीवानगी..!!"

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--कुछ ख़त जो भेज न पाए उन्हें..

'दर्द के स्याह प्याले..'




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"मन बहुत उदास है आज..
तुम जो नहीं हो पास..

फ़रक अब होता नहीं..
तंज़ कोई कसता नहीं..

चली जाऊँगी दिल से..
ना ढूँढना हर तिल में..

न आओगे जानती हूँ..
सताया है..मानती हूँ..

न आये पैग़ाम समझ लेना..
किस्सा हुआ तमाम जान लेना..!!!"

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--दर्द के स्याह प्याले..

Friday, November 22, 2013

'लकीरों की चाहत..'










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"तुम मेरी ज़िन्दगी का नहीं..मेरा एक अटूट हिस्सा बन चुके हो.. हर नफ्ज़ मुझमें शामिल रहते हो..कहीं भी जाऊँ, साँसें महकाते हो..कितने ही गहरे हों स्याह रात के साये, अपनी बाँहों में छुपा दर्द पिघला देते हो..!!!

आओ, उड़ जाते हैं भुला दुनिया..रवायत.. महसूस करते हैं लकीरों की चाहत..!!"

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Thursday, November 21, 2013

'बेइंतिहा मोहब्बत..'




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"इक तेरा जिस्म..
इक मेरी रूह..

रूह का जिस्म..
जिस्म की रूह..

मेरा क्या..
सब कुछ तेरा..

तेरा क्या..
जो कुछ मेरा..

बंधन सदियों पुराना..
पुराना-सा इक बंधन..

पोर की गर्माहट..
गर्माते पोर..

सुलगती आहें..
आहों में सुलगती..

बाँहों की गिरफ़्त..
गिरफ़्त में बाँहें..

अर्धचक्र में ख़ुमारी..
ख़ुमारी से अर्धचक्र..

इक तुम जानो..
इक मैं जानूँ..!!!"

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--बेइंतिहा मोहब्बत करते हैं हम आपसे..

'तुम..मैं..'





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"खुशबू..
सुगंध..

याद..
स्मृति..

जज़्बात..
भावना..

नक़्श..
चिन्ह..

तुम..
मैं..

क्षितिज..
उफ़्क..

नशा..
ख़ुमार..

प्रिय..
जां..

आत्मा..
रूह..

मैं..
तुम..!!"

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--इत्र..बाँहें..आलिंगन..पाक..नफ़्स..बख्त़..

Sunday, November 17, 2013

'समर्पण की खुशहाली..'





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"जीवन की परिभाषा ऐसी..
किसने बनायी है..
क्यूँ बेटी अपने घर से ही..
हुई परायी है..

काश! समझते जो बनाते..
ताने-वाने..
जीवन में समर्पण की खुशहाली..
एक वो ही लायी है..!!"

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'भारत-माँ..'




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"सर जी..आप सदैव सत्य लिखते हैं..
देश की राजनीतिक बीमारी पर तीर कसते हैं..

आज मुझे..ज़रा ये भी तो बताइए..
कितने यहाँ आपकी-मेरी बात सुनते हैं..

क्यूँ उनको असर होता नहीं..
शहीद उनका कोई होता नहीं..

क्या फितरत हो चली राष्ट्र-नेताओं की..
बिन पैसे कुछ होता नहीं..

आखिर कब तक ये किस्सा चलेगा..
आखिर कब तक इन्साफ बिकेगा..

न कल कुछ हुआ है..ना आगे कुछ होगा..
६६ वर्ष बाद भी असह्य-सा देश-ह्रदय होगा..

चीरते हैं अपने ही कुछ पाक-पुजारी..
कितनी रातें सैनिकों ने जागे गुजारीं..

कौन लिखेगा ऐसी क़ुरबानी..
बाकी कहाँ खून में रवानी..

शर्मिंदा हूँ..न रख सका भारत-माँ की लाज..
ए-माँ..गुनाह मेरा भी है..न करना मुझे माफ़..!!"

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'नाराज़ हूँ आपसे..'






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"जाइये..नाराज़ हूँ आपसे..नहीं करनी कोई बात..!! मेरे किसी सवाल का जवाब नहीं देते..अब, जब तक आप हर सवाल का जवाब विस्तार से नहीं देंगे..मुझे कोई और बात नहीं सुननी..!!!!

वैसे भी, २ दिन बाद तो अगले १० दिन तक नहीं नहीं मिलेंगे मेरे निशां.. शायद, बढ़ भी जाए समय की ये अल्प-अवधि..!!

"जानते थे हम..
न होगी सुनवाई..
जाने क्यूँ फिर..
आस लगाईं..!!"

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--रूह सैडी-सैडी..

'माँ का लाल..'






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"जाने कितने असंतुष्ट हुए..
जाने कितने शत्रु होंगे..
सोचूँ गर सबके लिए..
पूरे न कभी स्वप्न होंगे..

इसीलिए बढ़ता गया..
थकता गया..चलता गया..
न शब्द थे..न कोई सहाय..
अपना विकास करता गया..

अधिकार मेरा है और रहेगा..
कर लेना तुम सारे जतन..
अपनी माँ का लाल हूँ..
मिट आया मैं अपने वतन..!!!"

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