Friday, January 10, 2014

'गैजेट्स की गली..'







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"झिलमिल तारे जाने कबसे मेरा ओढ़ना-बिछौना रहे हैं.. झाँकती है रूह से मुलायम घराने की बेसबब यादें.. भर जाती है आँखों के पोर में सेर-सेर मोतियों के ठेले..!!

पाबंदियां वक़्त की..रवायतें ज़माने की..अहमियत खोते हर्फ़..फरेबी जिस्म लगाये रिश्ते.. ये ही सच्चाई..!!"

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--मासूमियत खो गयी गैजेट्स की गली..!!

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