Monday, March 24, 2014

'वाज़िब दूरियां..'






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"कितना कुछ कहती रही..
जाने क्या सहती रही..

ख़ामोश रूमानियत..फ़क़त..
दरिया-सी बहती रही..

वाज़िब दूरियां..बन लहू..
साँसों में रहती रही..!!"


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Sunday, March 23, 2014

'रजनीगंधा..'




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"रजनीगंधा का फूल..
अब तक महकता है..
उस उर्दू-हिंदी डिक्शनरी में..
हर बार उठाती हूँ..
शेल्फ से जब..
उंगलियाँ ख़ुद-ब-ख़ुद..
महसूस कर लेतीं हैं..
रूह तुम्हारी..

सफ़ेद पंखुरियाँ अब सफ़ेद कहाँ..
तेरी सौंधी खश्बू..
रेशे-रेशे में उतर आई है..

छप गयी है उस पन्ने पे..
तस्वीर तेरी..
पोर से बह चली हरारत कोई..

तेरी गिरफ़्त के जाम..
सुलगा रहे..'कैफ़ियत के दाम'..

लिखना-पढ़ना काफ़ूर हुआ..
मिलन जब उनसे यूँ हुआ..

हर्फ़ भुला रहे..राग़ सारे..
लुटा रहे..'हमारे दाग़' सारे..

शिराओं के ज़ख्म उभरने लगे..
तेरी छुअन को तरसने लगे..

हरी कहाँ अब..रजनीगंधा की डाली..
बेबसी दिखा रही..अदा निराली..

चले आओ..जां..
कागज़ को छू..
मुझे ज़िंदा कर दो..
भर दो..
महकती साँसें..
चहकती आहें..
पोर का सुकूं..
और..
इसकी सिलवटों में..
सिलवटें हमारी..!!"

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--तुमको भी बहुत पसंद है न..रजनीगंधा की सौंधी सुगंध.. <3

Saturday, March 22, 2014

'दीवार-ए-रूह..'



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"पढ़ती हूँ जब-जब..तुमको लिखे ख़त बेशुमार..
नमी दीवार-ए-रूह..जाने क्यूँ उभर आती है..

आज दफ़ना दूँगी..बेसबब यादें..जज़्बात..
परत जाने कितनी..आँखों पे जम जाती है..

ज़िद भर-भर थैले.. परेशां अब न करेंगे..
मायूसी तेरी साँसों में रम-रम जाती है..

दूर रहना मेरा..गर पसंद है तुमको..जां..
वादा निभाने ख़ातिर.. मैं नम जाती हूँ..!!"

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--मन उदास..अपुन आउटकास्ट..

Tuesday, March 18, 2014

'हैसियत की जिल्द..'





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"ख़ुद पे ही हँसता हूँ..
ख़ुद पे ही रोता हूँ..

जी भर जब लिखता हूँ..
ज़ख्मों को पीता हूँ..

स्याह रंग डालता हूँ..
वज़ूद के पन्ने पे..
माकूल तस्वीर पाता हूँ..

बंद रस्ते..खाली मकां..
रिश्तों की साँस..
खाली दीवार पे ढूँढता हूँ..

न कर मुझे पाने की ख्वाहिश..
हर शब जीता..हर सहर मरता हूँ..

होंगे दीवाने..हबीब बेशुमार..
रूह पे हैसियत की जिल्द रखता हूँ..!!"

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Saturday, March 15, 2014

'तस्वीर..'



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"धुंध में उठती तीस.. जिस्म पे सजी होंगी तेरी तस्वीर..!!"

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Friday, March 14, 2014

'इबारतें..'






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"इक टुकड़ा चाँद का पाती हूँ..
बादल से लड़ आती हूँ..
अजीब घटनायें..अब घटने लगीं हैं..
ज़िन्दगी की धूप..खिलने लगी है..

जाओ..के तुम आज़ाद हो..ए-दोस्त..
गिरफ़्त फ़क़त..दम घोंटने लगी है..

जश्न-ए-इबादत मुश्किल हुआ..
मसरूफ़ियत कुछ मसरूफ रही..
तेरी आँखें इमां मेरा..टटोलने लगीं हैं..

सफ़र की पाबंधी..वक़्त की नज़ाकत..
तुम खुश रहना..दुनिया बदलने लगी है..


आँधियों के अपने रेले हैं..
ख्वाहिशों के अपने मेले हैं..
तेरी ख़ातिर उंगलियाँ..
शामो-सहर इबारतें लिखने लगी हैं..!!"

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--वीकेंड का अथाह ज्ञान..:-)

Wednesday, March 12, 2014

'पारितोषिक वितरण..'





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"रक्तरंजित ह्रदय का पारितोषिक वितरण समारोह सजता है प्रतिदिन रात्रि के पहले और दूसरे प्रहर.. मैं अविभाजित-सा श्वांस-तंत्र को सहलाता हूँ.. भरता हूँ विभिन्न चित्रों के रंग और मांजता हूँ तूलिका के सीप..!!!

तुम मढ़ते हो 'चरित्र प्रमाण-पत्र'..होती है जिसकी लिखावट स्याह-सी स्याही से..!!"

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--जीवन-प्रणाली पर महत्वपूर्ण शोध..

Monday, March 10, 2014

'संबंध आत्मीयता के..'






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"सुन्दरता से उपजे..
प्रेम से जो रोपे..

संबंध आत्मीयता के..!!"

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--आभारी हूँ..

'हक़ीक़त की मोहब्बत..'




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"ख़ुशी नापते हुए कब छोटी पड़ जाती है..इसका पता तेज़ बारिश में घिरने पर चला.. कड़कती बिजली और उमड़ते तूफ़ान ने जज़्बात को ही तोड़ डाला..!!

कितनी ज़ालिम होती है न..हक़ीक़त की मोहब्बत..!!"

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Sunday, March 9, 2014

'इश्क की कब्रगाह -1..'







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"कशिश कैसी भी हो.. मियाद सबकी तय होती है..
मोहब्बत कैसी भी हो..बर्बादी सबकी तय होती है..!!"

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--ऑय-ओपनर..इश्क की कब्रगाह का पहला पड़ाव..

Friday, March 7, 2014

'इन्द्रधनुष..'







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"मेरे सपनों को अपने रूह की ज़मीं पर..अपनी शफ़क़त से पाला-पोसा है.. जब-जब दहकती थी रुसवाई की आँधी..अपने आँसुओं को बौछार बना सँवारा है तुमने..!!

ख़ुद को मेरी आँहों में उतार..ताज पहनाया है.. छुपा छालों का दर्द..ज़ख्मों को मेरे सहलाया है..!! मुझ बदमिज़ाज को दे आसरा..हर नफ्ज़ गले लगाया है..!!"

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--मेरी तल्ख़ धूप के इन्द्रधनुष..

Thursday, March 6, 2014

'फीनिक्स..'




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"इक तेरा राख से उठना..
आकाश पा लेना..लुटा..
ख़ुद को राख बना लेना..

फीनिक्स-सा जिस्म..
आग-सी रूह..
तूफ़ानी मंज़र..
मेरी जुस्तजू..!!"

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Wednesday, March 5, 2014

'बेशुमार परतें..'






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"मेरे दर्द को सींचा है तुमने..

जब-जब स्याह था आकाश..सितारों को बिखेरा तुमने..!! जब-जब था जाड़ा..बाँहों का कंबल ओढ़ाया तुमने..!! जब-जब तल्ख़ थी जेठ की दोपहर..गुलमोहर का स्पर्श लुटाया तुमने..!! जब-जब बेसहारा था बूंदों का काफ़िला..जिस्म का छाता बनाया तुमने..!! जब-जब रेज़ा-रेज़ा हुआ था वज़ूद..अलाव साँसों का जलाया तुमने..!!

आज जब उतार फेंकीं हैं बेशुमार परतें..फ़ासले दरमियां क्यूँ फ़ैसले करने लगे..??"

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--क्यूँ चले गए..आप होते तो मेरे दर्द को नया आयाम देते.. मेरे आँसुओं को नया मंज़र.. और बेबाक ख्वाहिशों को खंज़र.. मिस्ड यूँ बैडली.. :(

'तेरी इक छुअन..'






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"तेरी इक छुअन..और वो हरारत से लबरेज़ मेरा जिस्म.. तेरी बाँहों की पनाह..और रंज़ो-गम का काफ़ूर हो जाना.. तेरे पोर की स्याही..और मेरे गोलार्द्ध की हिमाकत.. तेरी नर्म महकती साँसें..और मेरे काँधे का तिल..!!

पूरे चार दिन के इंतज़ार के बाद वस्ल-ए-रात का क़हर.. जां..सच, बहुत ज़ालिम हैं आप..!!"

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--बेइन्तिहां मोहब्बत के फ्यू एक्ज़ाम्पल्ज़..

Monday, March 3, 2014

'स्याही-सी रंगत..'




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"रहने दो पलकों को यूँ ही..
झाँकतीं मेरे भीतर..
स्याही-सी रंगत उड़ेल..
रीत जाने दो..मीत मेरे..!!"

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'अरमान..'





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"काश..ये मुमकिन हो जाए..
वो मुझे 'मुझसा' देख जाए..

कहाँ होते हैं अरमान पूरे..
ख्वाहिश जो निखर जाए..!!!"

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Sunday, March 2, 2014

'ज़ख्म..'




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"ज़ख्म जैसे भी हों अपने होते हैं.. खुद के सींचे हुए..खुद के रोपे हुए..!!! जाने फिर उनके अंजाम क्यूँ और ज़ख्म देते हैं..!!"

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--बेवज़ह दर्द..बेशुमार हसरत..