Wednesday, March 5, 2014

'तेरी इक छुअन..'






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"तेरी इक छुअन..और वो हरारत से लबरेज़ मेरा जिस्म.. तेरी बाँहों की पनाह..और रंज़ो-गम का काफ़ूर हो जाना.. तेरे पोर की स्याही..और मेरे गोलार्द्ध की हिमाकत.. तेरी नर्म महकती साँसें..और मेरे काँधे का तिल..!!

पूरे चार दिन के इंतज़ार के बाद वस्ल-ए-रात का क़हर.. जां..सच, बहुत ज़ालिम हैं आप..!!"

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--बेइन्तिहां मोहब्बत के फ्यू एक्ज़ाम्पल्ज़..

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