Wednesday, July 2, 2014

'स्वप्न..'




...


"मैं हर रात जीता हूँ..
हर सुबह..मेरी मृत्यु निश्चित है..

मुझे प्राण देना..
तुम्हारा कर्तव्य और धर्म है..

मैं अंतरात्मा में पलता..
स्वप्न हूँ, वत्स..!!"

...

--यथार्थ..

2 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (04-07-2014) को "स्वप्न सिमट जाते हैं" {चर्चामंच - 1664} पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद मयंक साब..!!

सादर आभार..!!