Friday, January 31, 2014

'ब्रॉड-माइंडेड..'







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"सुनो, तुमने शिखर को मैसेज कर दिया न कि वो तुम्हें अबसे परेशां न किया करे.. बहुत हुआ उसका अब, जब देखो WhatsApp पर किसी न किसी बहाने तुमसे जुड़ना चाहता है..!!"

"हाँ, मैंने लिख दिया था..!! और तुमने नेहा को बोल दिया..यूँ लेट नाईट वीडियोज़ न भेजा करें तुमको..!!"

"अरे, क्या तुम भी..?? कॉलेज की फ्रेंड है..दो-चार वीडियो भेज दिए तो क्या हुआ..?? तुम्हारी सोच भी दकियानूसी हो गयी है..!!"

"मैं..और वो भी दकियानूसी..??" स्नेह ने सोचा.."क्या ये वो ही अरविन्द है जिसे मेरे 'ब्रॉड-माइंडेड' होने पर गर्व हुआ करता था..? कैसे हम 'बैस्ट फ्रेंड्ज़ से बैस्ट क्रिटिक हो गए..?? शिखर का सिंपल मैसेज भेजना गुनाह और नेहा का लेट नाईट वीडियोज़ भेजना कैज़ुअल बात..????

शायद टेक्नो-सैवी होने के साईड इफेक्ट्स हैं.. पर्सनल स्पेस को वैरी पर्सनल में ट्रांसफॉर्म करना ही इसकी जीत है..!!"

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'महसूस किया बरसों बाद..'








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"सुनो..बहुत ठण्ड है..नफरत का कोहरा कब से बाँहें पसारे खड़ा है.. वीरान जाड़ा ख़ुमारी लुटा रहा है..!!! बरसाये लाख क़हर..तुम न डरना उस क़ातिलाना हवा से..

मेरी चाहत का कम्बल..मेरी रूह का अलाव..मेरी साँसों की खलिश..मेरे जिस्म की हरारत..बेपनाह मोहब्बत..और हम.. देखना जड़ देंगे एक वार्म कोज़ी सिलवटों का आशियाना..!!!"

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--महसूस किया बरसों बाद.. शब अपनी होने को है..

Thursday, January 30, 2014

'तैरता तेरा नाम..'





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"तेरा नाम भी अज़ब मादकता का बोध कराता है.. मोबाईल की टच स्क्रीन पर तैरता तेरा नाम..जैसे छुआ है तुझे अभी-अभी..!!"

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--जाने वस्ल-ए-रात कब आएगी..

Tuesday, January 28, 2014

'हर शै पे काबिज़..'











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"इक तेरे आने और जाने में..
अंतर्मन के हर किनारे में..
रखा है तुझे सहेज के..

न देख ले कोई..

मेरी डायरी के हर पन्ने पे..
मेरे वार्डरॉब के हर कपड़े में..
मेरे शैल्फ़ की हर किताब में..
मेरे तकिये के लिहाफ़ पे..
मेरी रजाई की रुई में..
मेरे मोबाईल के पासवर्ड में..
मेरी कार के स्टीयरिंग पे..
मेरी डाईनिंग चेयर के बैक पे..
मेरी परफ्यूम की बौटल पे..
मेरे सनग्लास के फ्रेम पे..

बसे हो तुम..
हर तरफ..

हर शै पे काबिज़..
गिरफ़्त तेरी..

अटका है जुबां पे..
इक जाम तेरा..!!"

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--लेट्स ग्रो टुगैदर..

'सव्वाली ही रहा..'











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"कैसी तलब थी.. कुछ न समझ सका..
आवारा था..आवारा ही रहा..

हँसी-खेल में मिटाता रहा जज़्बात सारे..
तनहा था..तनहा ही रहा..

बहर..रदीफ़..मतला..
सब खफ़ा हैं..
हर शे'र अधूरा था..अधूरा ही रहा..

बेरुख़ी इक तेरी सह न सका..
जुदा हुआ कैसे तेरी रूह से..
जो हुआ जुदा..जुदा ही रहा..

उम्मीदें बेवज़ह साहिल पे तैरतीं..
गहराई नापता मैं..
नादां था..नादां ही रहा..

बेइंतिहां मोहब्बत है तुझसे..
'जां'..
सव्वाली था..सव्वाली ही रहा..

न भरना बाँहों में कभी..
बर्बाद था..बर्बाद ही रहा..!!"

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--काश तुम सुनते..वो जो मैंने कभी कहा ही नहीं..

Tuesday, January 21, 2014

'अलाव की शाम..'




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"उम्मीद का दामन थाम निहारता रहा..तनहा था हर छोर, जाने क्यूँ हाँफता रहा.. मेरा माज़ी..अब तलक पेशानी पे बोसे जड़..मेरी खुरदुरी लकीरों को सहलाता है..!!

तलाश में हूँ..उस सहर की जो शुरू हो तेरे अलाव की शाम से..!!"

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'अनुचित-सा मौन..'







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"तरण-ताल पर तैरता मौन..शांत-सा गहरा मौन..मेरे अंतर्मन को मापता..!! जब-जब बहता है अनुचित-सा मौन..अधिकाधिक कष्टदायक ही होता है मौन..!!"

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--कठिनतम चढ़ाई..

'जां..'







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"बिखरा है रंग तेरा..हर शै पे जानिब.. इन दिनों बहुत बोलता हूँ मैं..'जानिब'..!!! अब 'जां' बोलने से डरता हूँ..इक तुमपे ही मरता हूँ..!!

अब सब बेज़ार-सा है..
तुम्हें भी इंतज़ार-सा है..??

जाने देते हैं सब बातें..फ़ायदा क्या उस मचान का जहाँ साथ रुक न सकें..!!"

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--संडे ग्लोरी..

'मखौल..'





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"सपनों के टूटने पे आवाज़ नहीं होती इन दिनों..छुट्टी पर होंगे सब..

मखौल अपना बना क्या मिला..कल भी तुझसे दूर था..आज भी वहाँ ही रहा..!!"

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--ज़िन्दगी की कहानी..

'साँसों में खलिश..'




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"इक सच मेरा तुझसे रहेगा जुड़ा जब तक है साँसों में खलिश.. तुम चाहो न चाहो..!!"

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Friday, January 17, 2014

'ग़ैरों के आँगन..'




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"नीलाम हुआ तेरी गली तो अच्छा लगा..बिकता जो ग़ैरों के आँगन तो मोहब्बत मेरी ज़ाया होती..!!!"

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--अलविदा..

'नादां दिल..'






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"कहीं धुआं उठता रहा..
कहीं सुलगता रहा जिस्म..
कहीं धड़कने की ख़्वाहिशें थीं..
कहीं नादां दिल..
किसे समझाता..किसे बहलाता..
दोनों अपने थे..
और..
मैं बेगाना..!!"

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--एहसास कुछ पुराने..नए सिरे से..

Friday, January 10, 2014

'उस क्षण के गवाह..'




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"मेरे प्रिय..मेरी जां..

आपसे ही ख़ुद को पहचान पायी..आपसे ही अपने वज़ूद के होने का तमगा मिला..!! मेरा क्या था, मेरा क्या है?? मैं जीवन की उपलब्धियों को दरकिनार कर..अपना करियर दाँव पर लगा चुकी थी..क्यूँ आप उसमें साँसें फूँक गए??

मेरे अपने ही मुझसे दूर थे और आप इतने दूर होते हुए भी मेरे अपने..!!

मेरे हर उस क्षण के गवाह..जब-जब मैंने आँखों के समंदर को आपके काँधे पे उड़ेला था.. अपनी गोद में सुला आप मेरी आँखों में गहरे धंसे सपनों के बारीक टुकड़ों को निकाल सहलाते थे मेरा सर.. उस एक 'टाईट हग' से मेरे सारे इन्हिबिशंज़ थक-हार जाते थे..

कैसे आप समझ लेते थे..जो मैं कह भी नहीं पाती थी..??

आज फिर से 'सबब दिल धड़कने का' कुछ कह रहा है.. चाँद की रातें भी रोशनी माँग रहीं हैं '११६' वाली.. और फिर..'बहुत दूर होके बहुत पास हो तुम..'..

वस्ल की रात वाली दुआ अता हो..

नाम यूँ भी बदनाम है मेरा..!!"

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--आपको ही चाहा है..ता-उम्र चाहूँगी..

'गैजेट्स की गली..'







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"झिलमिल तारे जाने कबसे मेरा ओढ़ना-बिछौना रहे हैं.. झाँकती है रूह से मुलायम घराने की बेसबब यादें.. भर जाती है आँखों के पोर में सेर-सेर मोतियों के ठेले..!!

पाबंदियां वक़्त की..रवायतें ज़माने की..अहमियत खोते हर्फ़..फरेबी जिस्म लगाये रिश्ते.. ये ही सच्चाई..!!"

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--मासूमियत खो गयी गैजेट्स की गली..!!

Monday, January 6, 2014

'वादा-ए-उम्र..'






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"सुनो, मुझे चाहना मुमकिन कहाँ..
टूटा दिल जुड़ना मुमकिन कहाँ..१..

तनहा हूँ..तनहा रहने दो..जो मिले तुम..
किनारों को उलटना मुमकिन कहाँ..२..

तुम जानते थे मजबूरियां..फ़क़त..
निभाना वादा-ए-उम्र मुमकिन कहाँ..३..

चले जाओ साकी..हासिल ख़ुशी..
मेरे कूचे..देखो..अब मुमकिन कहाँ..४..

अज़ीज़ रुक्सत..हम-जलीस ग़ैर..
आवारा नसीब..मोहब्बत मुमकिन कहाँ..५..!!"

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Wednesday, January 1, 2014

'ज़ालिम टुकड़े..'






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"कितने करीने से..कितने सलीके से बिखरते हैं..हर ओर..!! जहाँ भी जाऊँ..पीछा करते हैं.. कार के डैशबोर्ड पर..स्टडी टेबल के ग्लास पर..मोबईल की स्क्रीन पर..डाईनिंग मैट्स पर..मार्बल फ्लोरिंग पर.. किताबों के शैल्फ़ पर..

कितने वफ़ादार हैं..ये टूटे हुए सपनों के ज़ालिम टुकड़े..!!!"

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--रहगुज़र तलाशते ख़ानाबदोश..