Friday, July 31, 2015

'रंग बारिश के..'





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"कुछ शौक़ बड़े ज़ालिम होते हैं..

जैसे.. ‪#‎जां‬ से बेपनाह बेंतिहां मोहब्बत..
जैसे..तपती रूह में विरह की आग तापना..
जैसे..हारी हुई बाज़ी के लिए..ख़ुद का दाँव लगाना..
जैसे..बारिश में यादों को हवा लगाना..
जैसे..रजनीगंधा-फूलों से महकता FB-गलियारा..
जैसे..प्रस्फुटित प्रेम और अविरल विलाप..
जैसे..वहशत का जाम और शा'यरा बदनाम..!!"

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--रंग बारिश के..शूल से सॉफ्ट एंड सटल..

'लक्ष्य की शान..'





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"आज चलता हूँ..
जब थक-हार के बैठने के बाद..

एक स्फूर्ति है..
जो देती है साथ..

पग-पग निहारता रहूँ..
लक्ष्य की शान..

रग-रग संवारता रहूँ..
जीवन का ज्ञान..!!"

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'रुकसत की शहनाई..'




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"कहाँ लिख पाता हूँ..
हाले-दिल अब..
गहराने लगे हो..
साँसों में जब..

ख़ास हो गए तुम..
दुनिया की तलब..
मैं कहाँ कह सकूँगा..
मोहब्बत के शफ़क़..

गिरफ़्त कस..रूह..
बंधे जाने..कब..
बोसे का जादू..
महके किस शब..

फ़साने दरमियान..
धड़कन-ए-दिल सबब..
हारा हर बाज़ी..
हसरतें गयीं दब..!!"

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--ग़मे-जुदाई..रुकसत की शहनाई..फ़ुरक़त के शज़र..

Saturday, July 18, 2015

'क्या-क्या अदा लिखूँ..'






‪#‎जां‬


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"आज बहुत दिनों बाद सोचा..कुछ लिख भेजूँ..

चाँद लिखूँ..ख्व़ाब लिखूँ..
तारें लिखूँ..रूआब लिखूँ..

कहो न..जां..

बेताबी लिखूँ..हरारत लिखूँ..
जुम्बिश लिखूँ..शरारत लिखूँ..

सुनो न..जां..

गिरफ़्त लिखूँ..अलाव लिखूँ..
सिलवटें लिखूँ..सैलाब लिखूँ..

रुको न..जां..

फ़साना लिखूँ..साज़िश लिखूँ..
बंदिश लिखूँ..नवाज़िश लिखूँ..

देखो न..जां..

क़ायदा लिखूँ..इबादत लिखूँ..
तसव्वुफ़ लिखूँ..नज़ाकत लिखूँ..

तुम ही बताओ न..जां..
अंजुमन में..शिद्दत से..
क्या-क्या अदा लिखूँ..!!"

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--इशारा-ए-इश्क़..

Thursday, July 16, 2015

'अ टोस्ट टू आवर लव..'






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"ग़म की बिसात थी..
प्यादे आँसू से लबरेज़..

घोड़ा ढाई मुट्ठी नमक लाया..
ऊँट टेड़ी चाल से ख़ंज़र घोंप गया..

बेचारा हाथी..मजबूर था..
सीधे-सीधे लफ़्ज़ों से क़त्ल करता गया..

वज़ीर को तो महफूज़ रखना था..
सो..आनन-फ़ानन में..
रिश्तों का समंदर डुबो आया..

रानी..टूटी-बिखरी..
गुज़ारिश करती रही..
अपने मसीहा को पुकारती..
उसे पाने की चाह..
हर मकसद से ऊपर..

आसमां से तारे चटकते हैं..

आज भी..
घुलती रही..साँसों में..
प्लैनेट्स की पोजीशन चेंज वाली पेंटिंग..
जलतरंग पे बजता..रूह चीरने वाला राग..

मैं मदहोश..
अपने रेशों से सहलाता..
इस ६४ बाय ६४ के आवारा खाने..

पाट सकते..शायद..
ये ग़म के पुल..
लहुलुहान परछाई..

रूह के पन्ने..
ज़ालिम हैं बहुत..!!"

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--अ टोस्ट टू आवर लव..जां..

Friday, July 10, 2015

'मोतीचूर लड्डू..'






‪#‎जां‬

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"बातों-बातों में हुआ ऐसा..

सब कुछ #जां का होता गया..
और..
मैं हारता गया..

हो उदास..पूछा जो उनसे..
'मेरा क्या..गर ये सब आपका है तो'..

ज़ालिम #जां का..
ज़वाब कुछ यूँ आया..
'मैं'..!!

होने लगे ऐसा जब..
समझना तब-तब..

साँसों से पक..
गिरफ़्त में ढक..
आँखों से चख़..

मोहब्बत की चाशनी..
और रसीली हो गयी है..!!"

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--मोतीचूर लड्डू..चाशनी वाले..

Wednesday, July 1, 2015

'ज़ीरो-वन..'




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"जीरो..वन का खेल है सारा..
जैसे उगता सूरज..दिखता न्यारा..

जीरो के आगे जब लगता वन..
देखो..बन जाता वो सबका प्यारा..

वन के बाद जब लगते हैं ज़ीरो..
दुनिया चाहे..बन जाए ये हमारा..

खेल खेलते दोनों मिल कर..
आगे इनके..हर कोई हारा..

वन बोला, 'चल साथ चलेंगे'..
ज़ीरो ने झट से ऑफर स्वीकारा..

दोस्ती एकदम पक्की वाली..जैसे..
मैं-दीदी..माँ की आँखों का तारा..!!"


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