Thursday, October 22, 2015

'पैगाम..'





...

"मेरे स्वर को नाम दे दो..
आज फ़िर मुझे वो काम दे दो..

सजाऊँ जिस्म को तेरे..
पोर से अपने..
जवानी पे रवानी के..
किस्से जाम दे दो..

लिखूँ जो हक़ीक़त..
मंज़ूर नहीं..
अपने 'सीक्रेट इमोशंज़' का..
कोई पैगाम दे दो..

उठते सवाल..
बिखरता उम्मीदे-ज़खीरा..
क़त्ल करने को मुझे..
खंज़र कोई इनाम दे दो..

आओ लौट के..
मेरे जानिब..
साँसों को मोहब्बत..
रूह को आराम दे दो..!!"

...

--शुक्र का शुक्र..<3

3 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (24-10-2015) को "क्या रावण सचमुच मे मर गया" (चर्चा अंक-2139) (चर्चा अंक-2136) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

priyankaabhilaashi said...

सादर आभार..मयंक साब..!!

Rajendra kumar said...

बेहतरीन प्रस्तुति, आभार आपका।