Monday, September 26, 2016

'जिस्म..मुहब्बत वाला..'






...

"दिनभर की भाग-दौड़ में..
उग आते हैं..
नाराज़गी के छोटे-छोटे फ़ाये..

बनते-बिगड़ते काम में..
झुलस जाते हैं..
मासूमियत के प्यारे साये..

छल-कपट के शोर में..
ठिठक जाते हैं..
हँसी के अल्हड़ पाये..

ओढ़ लेती है शब..
थक-हार के चादर..
मैं निकलता हूँ..
अपने जिस्म से..
तेरी रूह तक..

दूसरे प्रहर के ताने-बाने..
वो स्पेशल रतजगे..
तैरते सहर तक..
फ़िर पहन लेता हूँ..
जिस्म..मुहब्बत वाला..

बाँध कमीज़ पर..
निकल जाता हूँ..
उसी भाग-दौड़ में..
हवाले तुम्हारे जिस्म अपना..!!"

...

5 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

priyankaabhilaashi said...

हार्दिक धन्यवाद, यशोदा अग्रवाल महोदया जी..:)

कविता रावत said...

सबकुछ दौड़ते भागते ... प्यार भी ..
बहुत सही..

संजय भास्‍कर said...

बहुत सुंदर रचना ...और लाजवाब बोलती तस्वीर ..

रश्मि शर्मा said...

Bahut sundar rachna

Prakash Jain said...

Bahut sundar