Sunday, May 21, 2017

'सिलवट के घेरे..'

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"हिज़्र औ' वस्ल के फ़ेरे..
जिस्म समझता..
फ़क़त..
सिलवट के घेरे..

आ किसी रोज़..
पिघल जाने को..
के बह रहे..
अश्क़ सुनहरे..!!"

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