Sunday, December 31, 2017

'मोटिवेशनल धक्के..'





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"चाहत ज़िन्दगी से रखना बहुत, दोस्तों.. लिहाफ़ में इसके काँटों में लिपटे फूल मिलेंगे.. मेरी उँगलियों के पोर जब-जब भी इन काँटों से सराबोर हुए, एक टीस तो उठी ही.. तो क्या हुआ जो पाया नहीं मुकाम अब तक, थका नहीं तो रुक कैसे जाऊँ..

वैसे, मन थक जाये तो देह की स्फूर्ति भी किस काम की??

'चलते जाना ही ध्येय है', मेरा.... ज़िंदगी और लोग डिमांडिंग ही रहेंगे, जानती हूँ.. पर मन का टैम्परेचर ही डिसाइडिंग फैक्टर होता है.. गो फ़ॉर इट, ए-खानाबदोश..

मंज़िल कॉलिंग!"

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--#मोटिवेशनल धक्के..

1 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

Unknown said...

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