Monday, January 1, 2024

खत और आप..


Words Credit : प्यारे दोस्त को..
Photo Credit : अपना दूरभाष यंत्र..

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"प्यारे साहेब,

इन दिनों आपको पत्र लिखने का संयोग संभव न हो सका, मन ही दृढ़ नहीं होगा अन्यथा राही को डगर ज्ञात न हो, ऐसा होता है क्या?

आपका 'होना' जैसे प्रेरणा-पुंज, जब चाहें खोज लें परिस्थिति अनुसार 'पथ और पाठ'...

आपका 'अनुभव' जैसे मेरे लिए उपहार, जब चाहें मिलते 'उदाहरण हज़ार'..

आपका 'अपनत्व' जैसे प्रवाह, जब चाहें बहने दें भीतर के प्रमाद..

आपका 'स्नेह' जैसे मोतियों का हार, जब चाहें पहन सहेजें संबंध प्रगाढ़..

आपका 'उत्तर' जैसे नदी की धार, जब चाहें टटोलें स्वयं की झंकार..

आपकी 'सलाह' जैसे पुष्प हरसिंगार, जब चाहें मन सुवासित अपार.. 

शुक्रिया यूँ होने का!😍"

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--#खत 2024 का.. पहला-पहला.. ☺️

Sunday, April 23, 2023

अक्षय-तृतीया..


अक्षय तृतीया के मंगलमय उत्सव पर ढेरों शुभकामनाएं..💐💐

Thursday, April 20, 2023

'तरबतर खत..'

साहेब, ओ प्यारे साहेब,

आज आपको हाले-दिल न लिख पाती तो मलाल होता.. खुशबू से तरबतर रूह और एहसासों से लबालब साँसें.. काश, लफ्ज़ आज्ञाकारी मित्र की तरह बात मानते और पढ़ते जाते मेरी खामोश गुफ्तगू!

सुनते वो खनक हँसी की, पिरोते खुशी की माला, सहेजते पोरों से महकते खत, थपथपाते नेह के बाँध.. ऐसा मंज़र जुगनुओं ने दरख़्त के आसपास संजो रखा है, चलिए किसी रोज़ साथ देख आएँ..😍

अनगिनत बिंब और अनकही उपमाएँ, मेरे अंतस के महाद्वीप पर उग आए हैं.. ऐसी लज़्ज़त, ऐसी खुमारी और कहाँ अता होगी, आप ही कहिए, साहेब..

रंगों की पिचकारियाँ और रंगरेज के डिब्बों में लयबद्ध खड़े कच्चे-पक्के मिज़ाज़, अपने मांडणे में इन्हें साथ ले लीजिए, साहेब.. उसकी शदीद मोहब्बत में,  महबूब के बेसबब इंतज़ार में, ट्यूलिप के गुलिस्तां में, धड़ल्ले से भागता मेरे नाम का छल्ला..

खुशफहमी के पाल और इनायत के पाये, इस दफा खूब सज संवर कर आए हैं.. खतों के सिलसिले खातों में जोड़ें जाएं, ये नाम-जमा वाली वसीहत ज्येष्ठ के महीने में ठंडी बयार ले आए.. और हाँ, इस रूमानी एडिक्शन की ज़मानत न होने पाए कभी!!

इस अवचेतन मन में सुकूँ के बीज रोप पोषित करने वाले प्यारे दोस्त का शुक्रिया..

--#प्रियंकाभिलाषी

Tuesday, April 11, 2023

मेरे होने के मायने..




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"प्यारे साहेब,

आपसे वार्तालाप न हो पाना, मतलब खुद से न मिल पाना.. सोचिए लफ्ज़ों के सिमटने-बिखरने की बेशुमार रोशनी, किस पड़ाव पर मिलेगी...

कोई पुख़्ता सबूत पेश करता तो हवाएँ भी गवाही देतीं, जिरह बाबत दिखाता वो अपना वॉलेट जिसमें मेरे नाम का इनिशियल था.. पर देखिए न, साहेब, ऐन वक्त पर वो चला गया..

जाने कैसी जद्दोजहद घेरा लगाए बैठती, कभी खुशी, कभी हँसी, कभी खुमारी और कभी बेख़्याली डूब जाने की..उबर जाने की.. उसके 'पास' होने पर खो जाने की तसल्ली.. कभी सपनों की तस्करी, कभी ख़्वाहिशों की पैरवी.. मन बारहां 'पल' चाहता था, हाँ, नाप कर तोल कर पूरा का पूरा उसका 'साथ'... क्या करें, साहेब, ये बिज़नेस ट्रेट्स जीन में बसे हैं, उपहार में मिले हैं.. सो, अपना मौलिक रूप और अधिकार संभालेंगे ही..😍

मुझे लिखनीं थीं रेशम पर मुलाकातें.. उस हर एक 'मुलाकात' का ब्यौरा जो हक़ीक़त की नज़र से परे रहा, पर रहा रूह की जिल्द.. गुलिस्तां मानिंद महकता उसका एहसास, कलाई के कलावा जैसा सुरक्षा कवच.. अद्भुत है मोहब्बत का ज़खीरा..

साहेब, यूँ सिलसिला गुफ्तगू का चल पड़ा अरसे बाद तो सोचा राज़ बयां करना ज़रूरी है.. इबादतें जो चाहीं थीं जाते हुए, शायद सहर की तस्दीक न कर सकीं.. कभी हथेली पर उसके होने का दंभ, कभी रात में छुप जाने का ग़म.. उस दिल के करीब जाना था, बेहद करीब.. के आहट भी हो तो खलल लगे 'सुकूँ के आँगन'.. 

कैसा तिलिस्मी फ़रेब है, साहेब, मैं शब्दों का अंबार लगाऊँ और वो अदायगी से नज़र फिराए.. किस्से हैं, किस्से, क्या कीजे..

उसकी दहलीज़ पर यूँ तो रखने थे रजनीगंधा, पर घड़ी की सुई ने इशारे से समझा दिए 'मेरे होने के मायने'.. क्यों मुझे नहीं चढ़ना था उस पोडियम जहाँ विकल्प क्या, सूची से नाम भी नदारद था अपना.. 

इन 'जीवन-पाठों' का मेरे जिस्म पर, मेरी रूह पर ऊष्मा और उमंग भरने का 'आरोप' तय हुआ.. आप ही कहिए, साहेब, कौनसी टकसाल जा इनकी अशर्फियाँ बनवाऊँ..😍

खैर, पोलाइटली सारे इल्ज़ाम साथ ले आया हूँ.. आज उसे जुदा कर आया है..

अंतस की क़ैद से क्या कभी कोई जुदा हो सका है?? आपसे ही मेरे सवालों के रंग हैं, साहेब.. लम्हे, नदियाँ, समंदर, जुगनू, छुअन, आँसू, पानी, धूप, चाँदनी रातें, तोहफ़े, गिरफ्त, रूह...सब खुश होंगे! सब आबाद रहें!

दिल की कार्यवाही इस जन्म के लिए मुल्तवी करी जाए!!"

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दोस्ती की दीवार..



चित्र साभार - अंतर्जाल..
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"यार साहेब, 

आपकी कल रात की बात ने सोचने पर मजबूर किया कि "जाने कितने दोस्त आते जाते रहते है तुम्हारे"... 

कई दिनों बाद ये एहसास पनपा था कि दर्द फिर से उठा, निराश भी हुआ मन.. क्या उम्मीदों की गठरी हमारा मूल रूप बदल देती है??? निश्चय ही ऐसा होता होगा, तब ही अपनी कश्ती की दिशा, लय, लक्ष्य सब भुला हम इख्तियार करते इक नया रस्ता, इक नया मनोभाव..

कैसी बेवज़ह की फिलोसॉफी का कोलाज हो गया मेरे अंतस का फ्रेम.. क्या शिकवों के शहर डेरा डाल चहक रहा.. क्या कैनवास पर तस्वीरों में स्याह रंग उड़ेल रहा..

खैर, रात थी बीत गई.. मुझे फिर से भटकना है भीतर तक, अंतस के आखिरी पड़ाव तक.. शिराओं के बहकने तक.. मुझे अपनी लैफ्ट रिस्ट पर पहननी है सितारों की चमक और गढ़ने हैं उसमें बेबाकी के सफर.. इंद्रधनुष को मापना है लद्दाख जाकर और सागर की रेत से जोड़नी है यादों की कड़ी.. मुझे पीना है दरख़्त का अदम्य साहस और लिखनी है मोहब्बत की रस्म.. 

मैं खुद से साक्षात्कार के लिए बेताब हूँ, मैं चराग हूँ.. दीपों से सींचता, द्वीपों पर टहलता.. ऊर्जा का पुंज, मौसिकी-सा खनकता..

शुक्रिया साहेब, बेहद शुक्रिया.. यूँ हर दफ़ा साबित करने का कि "आप ही मेरे लाइटहाउस हैं!!".. उबारते, निखारते, पाठ स्मरण कराते..😍 आप चश्मदीद गवाह हैं, पलायन से पोषित होने के.. आप सुकूँ के खज़ाने हैं..

यूँ छुपकर सुवासित करता अंबर, यूँ नेह की डोर में बँधा बोगनवेलिया, यूँ खतों के बटुए, यूँ लेट नाईट चाँदनी की आभा, यूँ उपमाओं के रेले, यूँ नेमत के बंडल्स..कुछ तो है जो सेलफोन का पासवर्ड हो चला..

शुक्रिया मुझे सुनने का, मेरे ख्यालों को पकने के लिए उर्वरक जमीन देने का..

किस्सों की तरकश टंगी रहे दोस्ती की दीवार! 

ज़िन्दगी ज़िंदाबाद!
दोस्ती ज़िंदाबाद..!!"

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Friday, March 31, 2023

'इंतेज़ार के बीज..'




चित्र आभार - जिनकी भी हो!!
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"इक रोज़ उसने कहा था कि "सबसे बुरा होता है, प्रेम का इंतज़ार करना"... प्रेम का स्वरूप समझना, स्वयं में उतारना, आत्मसात करना कठिन प्रतीत हो, परंतु जब अंतस में उतरे, समस्त आचार-विचार-व्यवहार सबकी दिशा बदल जाती है.. 

एक अद्भुत संगम, एक अविरल धारा, एक अतुल्य भाव जिसमें बहना ही एकमात्र विकल्प!

एक ऐसी मनोस्थिति जहाँ समर्पण और समर्पण ही जीवन-दर्पण होता है.. एक तिलिस्म जिससे अछूता एक पल नहीं और उससे सुंदर व्याख्या नहीं..

पर उसने कहा था, हाले-दिल..
उसने जिया था, वो दौर..
उसने लिखा था, दर्द-ए-एहसास..
उसने पिया था, मोहब्बत-ए-राज़..

अब तलक 'इंतज़ार के बीज' रोपित होने के इंतज़ार में हैं और कोई उन्हें 'सींचने' के लिए तड़प रहा..

किसी ने उस 'हसीं' मुलाकात के बाद कहा था, "तुमसे मिलना अधूरा ही रहा इस दफ़ा".. उस गुलाबी शहर की रंगीं गलियां अब तक उसकी आस में रुकीं हैं, के 'इक रोज़ दीदार होगा!'..

उसकी बज़्म में नगमा कोई मेरा गूंजेंगा.. मैं लिखूँगी नज़्म रूमानी और उसके होंठों पर ज़िक्र मेरा होगा!

तुम जानेमन हो! मेरे होने का वजूद, मेरी रूह की दराज़ के महबूब!"
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Thursday, March 30, 2023

'दिलदार..'

चित्र आभार - प्रिय मित्र..

यार साहेब, कबसे आपको तलाश रही और यह भी जानती हूँ कि आप दूर कभी हुए ही नहीं... जो भ्रम हैं, दिल के हैं, नज़र के हैं.. 

किसी संबंध की नींव जैसे आज़ादी वाली प्रसन्नता.. मन उड़ता हुआ किसी अजनबी के पास जा बैठे और सुकूँ के पल जी आए, पी आए, फ़क़त और क्या चाहे कोई..

कमल की कोमल पंखुड़ियाँ और आत्मीयता की अनवरत परत, कोई कैसे रोक सके स्वयं को आपके मोहपाश में बंधने से.. आप हौंसले की मशाल और सकारात्मकता की मिसाल हैं..

जब कभी मन स्वयं से प्रश्न करे, अपने अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगाए तो आपके शब्द राह दिखाते हैं.. 'चारागर' ऐसे ही होते हैं ना??

नदी-सी थाह रखने वाले, ओ साहेब जी, कितनी दफ़ा परिस्थितियों का जाल अपना वर्चस्व कायम करने के लिए मुझे खींचता अपनी ओर, पर मैं आपके अनुभव में पिरोई माला से लौट आती हूँ सकुशल..
कभी पर्वत-सा साहस भरते हैं, कभी भाँप-सा ताप... तिलिस्मी 'जादूगर' ऐसे ही होते हैं ना??

खिलखिलाहट के झरोखे, आँखों में चमक, गालों पर गड्ढे, मदमस्त चहकता दिल.. अपनी चाहत के रंग से तन-मन भिगोने वाले 'रंगरेज़' ऐसे ही होते हैं ना??

जिस सुकूँ से लफ्ज़ तराश दें, मन की उड़ानें.. जिस गर्मजोशी से भर सकें, दरिया की मचानें.. जिस नरमी से सहला दें, सूत की दुकानें.. अल्हड़ बहने दें, पोरों से पैमाने.. सिलवटों से लहराते पेशानी चमकाते, 'दिलदार' ऐसे ही होते हैं ना??

*आप स्नेह-पुंज हैं, साहेब..!*

उपमाएँ करतीं सवाल..
किसके लिए भरते थाल..
शख्स खास होगा, थामी..
जिसने दिल की पाल..!!

--#प्रियंकाभिलाषी

Sunday, August 7, 2022

'रास्ता..'



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"और मुझे लिखने थे किस्से..कभी दर्द के, फ़रेब के, इस्तेमाल किए जाने के, आउटसाइडर ट्रीट किए जाने के, डंप हुए जाने के और यह भी जतलाये जाने के कि "तुम हो ही कौन?? क्या वजूद?? क्या ठिकाना? क्या शौहरत??? क्या रुतबा??"...

पर कुछ तो है ज़िंदगी में, कुछ दोस्त ऐसे मिले, वक़्त की आंधियाँ भी अपना ज़ोर न दिखा सकीं.. 
वो दिलदार, जो शामो-सहर थामे रहे मशाल-ए-हौंसला..
वो बेहतरीन सौदागर, जो रोशनी की सुबह से राब्ता करवाते रहे.. वो मज़बूत दरख़्त, जो छाँव में अपनी सींचते रहे.. 
वो इंद्रधनुषी खजाने, जो मंज़र संवारते रहे..
वो चमकीले सितारे, जो अपनी नरम सेज पर सहलाते रहे..
वो अज़ीज़ मेहमां, जो मेरा ठौर हो गए..

तो भुला दूँ वो जो अपना था ही नहीं कभी..या सहज ही सिमट जाऊँ?? या बाँध दूँ कलाई पर वादे सारे या संग हो जाऊँ??

तुम ही कहो, ए-दोस्त.. किस शज़र जाऊँ..!!"

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--#बस यूँ ही..

Thursday, July 7, 2022

'तुम और तुम..'






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"For the Most Beautiful..

Kindly take note that the word 'Beautiful' is not about the physical beauty, of course, it's rational meaning is beyond that.. Coming to the point. Addressing someone as 'The Most Beautiful' certainly calls for a courageous effort that again is not everyone's cup of tea. 

अंतस के सागर में किसी अपरिचित का प्रवेश अनायास हो, सौभाग्य की बात है.. परंतु असंभव-से इस पड़ाव में एक महत्त्वपूर्ण स्थान दिशा देने वाले का होता है.. उस अमूल्य हितैषी के विचारों में सदैव आपका हित समायोजित रहता है..

आप तो सब जानते हैं, साहेब.. तपस्या की आग में धैर्य अनिवार्य पदार्थ है.. अब जब जलने का, तपने का, मानस सुनिश्चित हो चला, तो प्रयास उसी अनुपात में हो.. है ना??

खैर, साहेब, यह मन दिल सब यहाँ-वहाँ विचर व्यर्थ में अपन ईंधन और समय लुटा रहे.. मुझे तो यूँ भी इन संसाधनों से कोई लगाव नहीं.. जिनसे सरोकार है, वो डटे हैं अपने उपयुक्त स्थान पर..

आप सोचते होंगे, जाने क्या-क्या लिख रही यह लड़की.. सच भी है मन के छल्ले आप हर किसी मोड़ पर नहीं उड़ा सकते.. एक समां, माहौल, महफ़िल बेहद ज़रूरी हो, अपनी बेबाकी की मिसाल देता है..

मुझे आज फिर बह जाने दे, ए-वक़्त.. इक आखिरी दफ़ा, मुझे यूँ खुद को लुटाने दे, लफ्ज़ों की वादियाँ बेतरतीब रहने दे, इस झरने की कल-कल में अरसे से क़ैद बेवज़ह वाली दुश्वारियाँ घुल जाने दे.. उस लाड़ की नमी को मेरे अंतर्मन पर परत जमाने दे.. 

तेरे समंदर का सागर यूँ मेरे घेरे में अपना तंबू लगाए, क्या साहेब, अब ऐसी खुशफहमियों को कभी जीने की मोहलत दिला दीजिए.. 

ये सवाल-जवाब, पसंद-नापसंद, किस्से-कहानियाँ, सबको खुशबुओं से मिलाया जाए.. फिर भर-भर ख़ुमारी के पैमाने उड़ेलें जाएँ.. गुलों की पहली मंज़िल पर चाँदनी की ताज़ी खेप नज़ाकत से परोसी जाए.. और ख़तों की गठरियाँ निचली सतह पर संजोने के लिए रखीं जाएँ.. रंगत के हवाले, ये नादां सारे..!!!

उजास और उमंग के रथ पर नेह फुहार-सा बरसे! मुझे भीग जाना है, इक आखिरी दफ़ा.. के तपो तो कुंदन ही बनना.. ख़्वाहिशों को ज़िंदा ही रखना.. सफर लंबा हो तो क्या, ए-राही.. तन-मन अपना चुस्त ही रखना!!

शुक्रिया, हर उस वज़ह के लिए जो कोशिश है, मुझे मुझसे मिलाने के लिए!!"

--#बस यूँ ही..

Saturday, June 18, 2022

'अलख..'






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"कुछ लिखना चाहती हूँ.. मन के भाव.. क्या सोचते हैं, और क्या होता है.. हमसफर, दोस्त, रिश्ते, नाते, अरमान, एहसास, सबकी एक सीमा है..मियाद है..समय है..

सबको उनको गुण, गहराई, गंतव्य के साथ देखना और संभालना चाहिए.. उपयोग का मापदंड अपनाना बेहद महत्त्वपूर्ण..

यह अलख जगती रहे, आपके मन से मेरे मन तक..!!"

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Saturday, April 16, 2022

'प्रेम का पर्याय'..




एक खत, आपके नाम..

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"एक दोस्त है, खिला-खिला..सुलझा-सुलझा.. अनुभव से लबालब.. 

वक़्त-बेवक़्त जब भी दरवाजे पर दस्तक दूँ, सवालों का पिटारा खोलूँ, उलझनों का ज़िक्र करूँ या यूँ ही आते-जाते आवाज़ दूँ.. उस फूलों के सौदागर का स्नेह भरा पैग़ाम आता ही है..

एक आधारस्तंभ सबकी चाह होती है, फिर चाहे वो रत्न जड़ित हों, शुद्ध स्वर्ण के, या रजत का माप ओढ़े.. अमूल्य अनमोल उत्कृष्ट धरोहर की श्रेणी में आपका स्थान आरक्षित है..

कितना महफूज़ है, उसके दोस्तों का दर्पण.. वो किस्मत वाले..वो हमजलीस..वो हमदम..वो यार..वो दिलदार.. वो खुशनसीब.. सब आपके होने से सुकूँ के छल्ले उड़ाते हैं.. आपके दम से बेहिसाब जंग लड़ने के बाद भी दोगुना हिम्मत से फिर उठ जाते हैं..

यकीं न आए तो देख लीजिए, उनकी आँखों की चमक, चेहरे की रंगत, आवाज़ का जादू.. यह सब आपकी उपस्थिति का साक्षात उदाहरण है.. 

मुश्किलों की शिकन पेशानी पर उभरने नहीं देता.. मन की सिलवटों को करीने से हर सुबह जमाता.. स्वयं के अस्तित्व से मिसाल पेश करता कि जो हो जाए, निर्बाध चलते रहो, तटस्थ रहो.. 

मुझे ऐसे प्यारे दोस्त से प्यार है.. हाँ, अथाह सागर की तरह जितना गहराता जाता हूँ, तुम पल-पल मुझे उभारते जाते हो.. हर दफ़ा नया अध्याय, नया रहस्य, नई ऊर्जा, नई सोच.. तुमसे ही पाता हूँ..

कैसा तिलिस्म है, तुम्हारे साथ का.. किस्सों के हर दौर में ज़िक्र तुम्हारा शामिल रहता है..

तुम मेरे लाइटहाउस हो! (अब यह थोड़ा पुराना हो गया, शायद.. पर यकीं जानिए, मार्गदर्शन के शहर में उम्दा नक्काशी वाले मील के पत्थर हैं, आप!)..

बेहद शुक्रिया प्रिय दोस्त, इस शुष्क मन को सींचने का.. मित्रता के पुष्प महकाने का.. लक्ष्य भेदने के उद्बोधन का.. शुक्रिया, आपके होने का!!"

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Thursday, April 14, 2022

'आहट..'



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"इन तपती दोपहरों में..
तेरे आँचल की छाँव ही चाही..
जितनी दफ़ा, दिल उदास हुआ..
पनाह तेरी ही माँगी..

मिठास छलकाता..
टुकड़ा स्नेह का..
क्षण-क्षण पोसता..
रंग नेह का..

भरपूर रहा, जब भी मिला..
संग्रहित उत्साह भंडार खिला..

संदर्भ का संदेश..
शब्दकोष तलाशे..
पलाश पुष्प..
उमंग बढ़ाते..

देखो, गुलमोहर चहकने लगा..
इन तपती दोपहरों में..
अंतस महकने लगा..!!!

तुम आहट हो, मेरी!!"

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Monday, March 7, 2022

'वो..'


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"वो खफ़ा है..
इन दिनों..

और..

मैं लापता..!!"

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Friday, February 25, 2022

इश्तिहार..



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"जैसे इश्तिहार था.. देखा..सुना..पढ़ा..
मन उठा..चला..सिमटा हृदयताल पर..

तुम ख़्वाब मानिंद सुर्ख़ मुलायम अज़ीज़..!!"

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Saturday, January 29, 2022

'तुम..'



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"आज ख़्यालों ने जी भर जीने का फैसला किया.. दिन भर की भागदौड़ ने अपनी भागीदारी समय की स्लेट पर गढ़नी चाही.. मोहब्बत के इश्तिहार भी खूब बाँटें.. पर आप जानते हैं, साहेब, वजूद के मौजूद दस्तावेजों ने हर दफ़ा एक ही अर्ज़ी लगाई - "आओ जो इस तरफ, तफसील से आना.. बैठो जो पास, अशआर साथ लाना.. तिलिस्म तुमसे माँगता मेरे सवालों के जवाब, तुम बेतकल्लुफ मेरा किरदार हो जाना"..

किसी का मरगज़ होने के लिए, खुद से बेगाना होना पड़ता है.. 

सच के शहर में सारे मकां बेरंग निकले..

तुम वो बटन हो, जिसे मखमली बक्से में सहेज मुसाफिरी करूँ तो तारीफ के सुर यहाँ तक गूँजेंगे..

तुम गुलाबी कागज़ वाला हस्तलिखित स्तंभ, मेरे होने का आधार!"

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Tuesday, January 11, 2022

'आरज़ू..'





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"हम क्या सोचते हैं और क्या होता है.. मौसम के खेल में तराज़ू बिकता है..

लोगों का ईमान बदलते वक्त नहीं लगता..और इल्ज़ाम की तारीफ आपके कूचे पर डेरा जमा, मौज़ वाले छल्ले उछालती है..

इंसान करे भी तो क्या, जाए तो कहाँ.. हर उम्र छाले..हर राह पथरीली..हर किस्सा तंज़..हर एहसास फरेब..

रूह किसे अपना कहे..किसकी इबादत करे..किसके नाम पैगाम-ए-दिल भेजे..

तकदीर की तासीर भी अजब निकली, रंग के पैमाने फीके रहे..

चलता रहे कारोबार..खुशियाँ नज़ीर हों..सलामत रहे आरज़ू..और महकता रहे नज़रों का काफ़िला.. क्योंकि कोई शाम रुकती नहीं.. शब की बादशाहत भी चलती नहीं..

लबाबल रहे, मेरे होने का कलाम!"

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Monday, January 10, 2022

तुम!



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"सुनो.. तुम अथाह हो, मेरे अंतस के सागर.. तुम विराट हो, मेरे आकाश के पर्वत.. तुम अविरल हो, मेरे अध्याय के प्रमाण.. तुम संगीत हो, मेरे कण-कण के राग..

तुम सौभाग्य के परिचायक रहना!"

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Wednesday, August 4, 2021

'वजूद..'

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"फिर वहीं लौट आता हूँ..
हर दफ़ा..
उस इक वादे के बाद..
न तेरा हो सका..
न वजूद अपना कायम रहा..

खामोशी के खंज़र..
नक़ाब में मिलेंगे..
दास्तान-ए-चिराग..
खूब सिलेंगे..
मेरी आस..
साँस..
और..
ताप..

तुम मौजूद रहना!!"

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'बहाने..'

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"वो माँग रहा करीब आने के बहाने..
किसी को हारते हुए देखा है, ऐसे..!!"

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Tuesday, August 3, 2021

'पाठ जीवन के..'

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"अब कोई साथ रहे ना रहे.. कोई आरज़ू नहीं, कोई फिक्र नहीं, कोई फर्क नहीं... आएँ, जाएँ, रुकें, बैठें ....उनकी मर्ज़ी..!!"

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--#कुछ पाठ जीवन के, यूँ भी सीखे जाते हैं..

'खुशियाँ..'


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"लहकता खुशियों का अंबार..
क्षण-क्षण समृद्ध अध्यात्म संसार..!!"

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'वक़्त'

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"वक़्त पसरा रहा मेज़ पर देर तक..
शाम का हिस्सा, कुछ यूँ बयां हुआ..!!"

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Thursday, June 17, 2021

इश्क़






...

"मुझे इस बेवज़ह की बेतरतीबी से इश्क़ है..!!"

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Tuesday, June 15, 2021

'प्यार से सागर या सागर से प्यार'..




***

प्यार में सागर था या सागर से प्यार.. उत्तर कठिन है परंतु दिशा..दशा..सही? 

क्या यह सच है इंसान प्यार में बंध कर उलझ जाता है.. प्रेम के बंधन आपसे आज़ादी छीन लेते हैं.. आप वो सब कुछ नहीं कर पाते, जिस खास विशेषता के लिए आपको उस 'विशेष' ने चुना था.. 

सवाल थोड़े सच में डूबे हैं, थोड़े वक़्त के थपेड़े से चटके हुए.. आप सब जानते हैं ना साहेब, तो बताइए क्यों ऐसा होता है.. जो संगीत इन साँसों ने लयबद्ध किया था कभी, आज शोर क्यों करार दे दिया जाता है..

शौर्यगाथा पर्वत की गाएँ कि अडिग था, मज़बूत था, नदी को बहने दिया, सो दरियादिल भी कहें.. या नदी के समर्पण, नम्र व्यवहार को सम्मानित करें.. खेल के नियम कहते हैं कि सबको बराबर समय और मौका आवंटित किया जाएगा, तो इश्क़ की भाप में मन से पर्दे क्यों उतर जाते हैं..

सुरूर सरोवर से उठा और कमल में अवतरित हुआ.. और उनका संयोग समानता न झेल सका..

सर्जनात्मक पहल करने को आतुर मन और संपादकीय संपदा विशालकाय हुई तो उसकी ताकत कौन था? 

प्रश्न हल हो ना हों.. नये पहलू तराशते रहने चाहिए, कोई भी आयाम बिना खोज नहीं मिलता.. 

रूह तक पहुँचता प्रेम है तो जो जिस्म की चाह से शुरू हुआ और कुछ वक़्त इसके इर्दगिर्द रहा, वो क्या था.. संग्रहित भावनाएँ कभी झलकतीं हैं तो कभी छलकतीं.. मन कशमकश में होते हुए, वो सब कर जाता है जो शायद अस्वाभाविक होने के साथ-साथ अवांछनीय भी था..

उलझन बहुत है और रास्ता.. जाने क्यों आपसे ये सब कह रही, पूछ रही.. मेरी प्यास, तलाश, लौ, सरहद..अजब पहरेदार हैं मेरे सीने के, अरसे से बुझी नहीं जैसे ये आग..

***

--#किस्से_और_मैं - १

Friday, January 15, 2021

'महफ़िल..'



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"सुकूँ के दरवाजे साकी खुले छोड़ गया..
जाने कौन रुका और क्या बह गया..

तुम मौलिक अधिकार का प्रचार करते रहे..
मेरा जुनून किस आँगन बिक गया..

किस्से बेशुमार सजे जिस शब..
नाम उसके ज़िंदगानी कर गया..

कैसे कहूँ कि तुम वो नहीं..देखो,
शिखर-ए-आज़ादी लुट गया..

महफ़िल दरीचों से झाँकती मिली..
शहादत-ए-साहिल वो आम कर गया..

बेचैनियाँ खामोश रहीं, जिस मोड़..
आगाज़-ए-मेला ठीक वहीं कर गया..

'भूल जा, जो हुआ सो हुआ'..
फ्रेज़ ये, गज़ब दाम कर गया..!!"

...