Monday, March 22, 2010

' आँचल..'


...

"तरबतर रूह..
नम काज़ल..
ढूँढूं फिर..
नया आँचल..
मुश्किल है..
गुड़ का नमकीन होना..!"

...

9 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

Dev said...

बहुत खूब ....

कृष्ण मुरारी प्रसाद said...

वाह...वाह....वाह....वाह....
......
......
मेरा ये पोस्ट आप और बच्चे भी पसंद करेंगे.......
..........
विश्व जल दिवस..........नंगा नहायेगा क्या...और निचोड़ेगा क्या ?...
लड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से..
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_22.html

M VERMA said...

तरबतर रूह
नम काजल
क्या खूब शब्दों को पिरोया है
सुन्दर

Udan Tashtari said...

बढ़िया!

--
हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!

लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.

अनेक शुभकामनाएँ.

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद देवेश प्रताप जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद श्याम मुरारी जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद वर्मा जी..!!

संजय भास्‍कर said...

एहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूब

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद संजय भास्कर जी..!!