Saturday, March 27, 2010

'जुस्तजू..'


...


"नगमों से उलझते हैं..
लफ्ज़ इन दिनों..
बिखरे से जज़्बात हैं..
मेरी मय्यत पर..

बंदिशों का कफ़न बांधे..
रूह की साँसें..
उफ़न आयीं..
फ़क़त..
आँखों में..
फिर..
वही जुस्तजू..!"

...

18 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

nadeem said...

Waah..Umdaa..
Ye jazbaat hi to chen lene nahi dete...

Rajeysha said...

खूबसरत।
तस्‍व्‍वुर की कब कि‍सी से बनती है
पर जुस्‍तजू है, बार बार उफनती है

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद नदीम जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद राजे जी..!!

Amitraghat said...

बढ़िया रचना.........."

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद अमृतघट जी..!!

विजयप्रकाश said...

बहुत सुंदर.. आंखों में शायद कोई अधूरी इच्छा पूरी होने की आस रह गयी है.

Udan Tashtari said...

बेहतरीन!!

M VERMA said...

कम शब्दों का इस्तेमाल करते हुए गहरी बाते कहना आपकी खाशियत है
सुन्दर रचना

Dev said...

बहुत बढ़िया प्रस्तुति .....

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद विजयप्रकाश जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद उड़न तश्तरी जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद वर्मा जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद देवेश प्रताप जी..!!

Omi said...

bahoot khoob... bahut hi simplicity se likhe hain aapne ye complicated jazbaat...

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद श्री ओमेन्द्र जी..!!

संजय भास्‍कर said...

बढ़िया रचना.........

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद संजय भास्कर जी..!!