Friday, January 7, 2011

'जिस्मानी ग़दर..'




...


"रमे हो इस कदर..

रूह के नश्तर..
भूला बैठें हैं..
जिस्मानी ग़दर..!!"

...

4 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

Anonymous said...

बहुत सुन्दर कणिका लिखी है आपने!

संजय भास्‍कर said...

भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत आभार।

संजय भास्‍कर said...

तमन्ना कभी पूरी नही होती.....संजय भास्कर
नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
धन्यवाद
http://sanjaybhaskar.blogspot.com/2011/01/blog-post_17.html

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद संजय भास्कर जी..!!