Thursday, February 23, 2012
'जलने दो..'
...
"क्यूँ हर नफ्ज़..
शरारत..गुस्ताखी मेरी..
छुपा देते हो..
जलने दो..
इस शब..
जिस्म और रूह..
बहुत तडपाया था..
रेज़ा-रेज़ा..
ए-राज़दां तुझे..!!!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
2/23/2012 05:51:00 AM
3
...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..
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'दी..'
'शर्मिन्दा हूँ..'
...
"हर नफ्ज़ गाता रहा..
तराना-ए-गम अपना..
कैसे भूल गया..
ए-माज़ी..
राजदां अपना..
बिखर रहा वजूद..
क्या मिल सकेगा..
फ़क़त..
इक फ़रमान..
रहूँ तनहा..
ता-उम्र..!!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
2/23/2012 05:06:00 AM
4
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दास्तान-ए-दिल..
Sunday, February 19, 2012
'पेचीदा..'
...
"करीब हुए फासले सारे..
मिटे दरमियां थे..
जितने नज़ारे..
जिस्मों से रूह के नाते..
उफ़..
बहुत पेचीदा हैं..
है ना..!!!"
...
"करीब हुए फासले सारे..
मिटे दरमियां थे..
जितने नज़ारे..
जिस्मों से रूह के नाते..
उफ़..
बहुत पेचीदा हैं..
है ना..!!!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
2/19/2012 01:28:00 AM
10
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बेज़ुबां ज़ख्म..
Wednesday, February 15, 2012
'आभार..'
आपके लिये दी..
...
"संघर्ष के काल में..
अपनत्व के अकाल में..
तुम ही थे..
हर क्षण..
बाँधते..
तराशते..
सँभालते..
कैसा बंधन है..
निस्वार्थ पवित्र सुंदर..
बिन स्पर्श पाती हूँ..
तुम्हें समीप..
ऐसा माधुर्य..
ऐसा स्नेह..
अमूल्य अद्भुत..
अभिभूत हूँ..
जीवन की इस कठिनतम बेला पर..
करती ह्रदय से प्रकट आभार हूँ..!!"
...
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"संघर्ष के काल में..
अपनत्व के अकाल में..
तुम ही थे..
हर क्षण..
बाँधते..
तराशते..
सँभालते..
कैसा बंधन है..
निस्वार्थ पवित्र सुंदर..
बिन स्पर्श पाती हूँ..
तुम्हें समीप..
ऐसा माधुर्य..
ऐसा स्नेह..
अमूल्य अद्भुत..
अभिभूत हूँ..
जीवन की इस कठिनतम बेला पर..
करती ह्रदय से प्रकट आभार हूँ..!!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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2/15/2012 12:41:00 AM
6
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'दी..'