Wednesday, February 27, 2013

'मिलन की रात..'




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"ना जाने कब से तड़प रही थी..तेरी आवाज़ सुनने को.. अटके हर्फ़..तंग साँसें..उँगलियाँ जम गयीं हों जैसे..सब कुछ बर्बाद..बिन तेरे--कुछ नहीं कामिल..!!!!

तलाशो ऐसा दरबार, जहाँ फैसला हो..दूरियां मिट गुल खिलें..हक़ में आये मिलन की रात..!!"

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--बातें बेवज़ह..

3 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

संजय भास्‍कर said...

कमाल की प्रस्तुति ....जितनी तारीफ़ करो मुझे तो कम ही लगेगी !

संजय भास्‍कर said...

आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद संजय भास्कर अहर्निश जी..!!