Wednesday, February 25, 2015

'खैरियत कैफ़ियत वाली..'






...


"रंगों के अपने रंग दिखने लगे..
मुहब्बत हमसे रक़ीब करने लगे..१..

चाहत उल्फ़त को थी..थोड़ी ज्यादा..
जिस्म पे..रूह के निशां मंजने लगे..२..

खैरियत कैफ़ियत वाली..जुदा रहे..
नक़ाब चेहरे पे..हबीबों के लगने लगे..३..

कम लिखता हूँ..हाले-दिल..बारहां..
आमद क़द्रदानों की..कूचे सजने लगे..४..!!"

...


--नशा-ए-वीकेंड..

2 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

संजय भास्‍कर said...

सादगी एवं बेबाकी से भरा गज़ल :)

priyankaabhilaashi said...

सादर आभार संजय भास्कर जी..!!