Thursday, April 30, 2015

'पुर्ज़ों की स्याही..'




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"इक पता तलाशता हूँ..अपनी ज़मीं से दूर..
इक आह संभालता हूँ..अपने जिस्म से दूर..
इक संदर्भ खंगालता हूँ..अपनी जिरह से दूर..

पुर्ज़ों की स्याही..विस्मित-सी..करे अनंत सवाल..!!"

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